नज़्म
ख़्वाहिशों के बोझ से
दबी ज़िदगी की
सीली मुट्ठियों में बंद
तुड़े-मुड़े परों की
सतरंगी तितलियाँ
अक्सर कुलबुलाती हैंं
दरारों से उंगलियों की
उलझकर रह जाती हैं।
ढककर हथेलियों से
सूरज की फीकी कतरनें
ढलती शाम के स्याह अंधेरों में
च़राग लिये ढूँढ़ते हैं
बुझे तारे ख़्वाहिशों के
जलाकर जगमगाने को
बोझिल ख़्वाबों की राहदारी को।
उमर की हथेलियों से
फिसलते लम्हों की
चंद गिनती की साँसों पर
तुम्हारी छुअन के महकते निशां हैं
भीगी पलकों के चिलमन में
गुनगुनाती तस्वीर तेरी
कसमसाती धड़कनों की
गूँजती ख़ामोश सदाओं में
एहसास के शरारे से
तन्हाइयों की गलियाँ रोशन हैं।
#श्वेता🍁
ढककर हथेलियों से
ReplyDeleteसूरज की फ़ीकी कतरनें.
Wahhhhh। बहुत ही उम्दा
अति आभार आपका अमित जी,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteमहत्वाकांक्षाओं की दौड़-धूप के बीच ज़िन्दगी में सुकूं तलाश रही है आपकी अभिव्यक्ति।बिम्बों और प्रतीकों का सौन्दर्यमयी प्रयोग।
ReplyDeleteकटीली झाड़ियों में उलझी ख़्वाबों की चादर आहिस्ते से ,क़रीने से ,संयम से सुलझानी होती है।
उत्तम सृजन।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आपकी सुंदर और सुलझी हुई प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा रवींद्र जी।
Deleteआपकी प्रेषित शुभकामनाएँ काम कर रही है,कृपया शुभकामनाओं का साथ बनाये रखे।
......तन्हाईयों की गलियाँ रोशन है! बहुत उम्दा!
ReplyDeleteअति आभारा आपका विश्वमोहन जी,आपकी बेशकीमती सराहना मिली मन उत्साहित हुआ।
Deleteहृदयतल से आभार आपका।
भीगी पलकों के चिलमन में
ReplyDeleteगुनगुनाती तस्वीर तेरी
कसमसाती धड़कनों की
गूँजती ख़ामोश सदाओं में
वाह!!!
लाजवाब.....
अति आभार आपका सुधा जी।मेरा मनोबल आप सदैव बढ़ा जाती है हृदयतल से अति आभार आपका सस्नेह।
Deleteवाहःह बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत खूब
अति आभार आपका लोकेश जी,हृदयतल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteबेहतरीन भावों को संजोये लाजवाब रचना .
ReplyDeleteबहुत आभार आपका मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteउमर की हथेलियों से
ReplyDeleteफिसलते लम्हों की
चंद गिनती की साँसों पर
तुम्हारी छुअन के महकते निशां हैं...
बहुत बढ़िया, स्वेता!
बहुत बहुत आभार ज्योति जी आप सदैव मेरी रचनाओं को सराहती है बहुत उत्साहवर्धन होता है।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।सस्नेह।
बहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteअति आभार आपका राजीव जी।
Deleteसुन्दर ! काबिलेतारीफ़ ,
ReplyDeleteसादर
जी अति आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteसादर।
अत्यंत सुंदर रचना ! एक ही रचना में जाने कितने ही चित्र खींच दिए आपने ! बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।सस्नेह शुक्रिया खूब सारा।
Deleteबहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द ...मनभावन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी।आपकी प्रतिक्रिया सदैल मनोबल बढ़ा जाती है।
Deleteवाह.... एक एक शब्द दिल को छू जातें हैं।लाज़बाब रचना।
ReplyDeleteवाह!श्वेता ,क्या बात है ,ख्वाहिशों के बोझ से दबी जिंदगी ,बंद हथेलियों में मुडी-तुडी तितलियाँ ..अक्सर कुलबुलाती हैं ..वाह!!.
ReplyDeleteन जाने क्यों अचानक ही मन में कुछ ये ख्याल आया इस नज़्म को पढ़ते पढ़ते कि
ReplyDeleteख्वाहिशों को कर बुलंद इतना कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ फिर भी कम निकले ।
वैसे मैंने सब कुछ जोड़ तोड़ खिचड़ी से बना दिया लेकिन झारखंड की तो खिचड़ी भी मशहूर है न ।तो समझ लो ये चटपटी खिचड़ी टाइप लिखा मैंने ।
रही नज़्म तो भई अभी से उम्र के हाथों लम्हे क्यों फिसल रहे ? ये चंद गिनती की सांसें ...
खैर नज़्म बहुत खूबसूरती से कही गयी है ।अंतिम दो पंक्तियाँ बहुत सुंदर ।
ढककर हथेलियों से
ReplyDeleteसूरज की फीकी कतरनें
ढलती शाम के स्याह अंधेरों में
च़राग लिये ढूँढ़ते हैं
बुझे तारे ख़्वाहिशों के
जलाकर जगमगाने को
बोझिल ख़्वाबों की राहदारी को।
वाह !! लाज़बाब सृजन श्वेता जी,सादर नमन आपको
उमर की हथेलियों से
ReplyDeleteफिसलते लम्हों की
चंद गिनती की साँसों पर
तुम्हारी छुअन के महकते निशां हैं
भीगी पलकों के चिलमन में
गुनगुनाती तस्वीर तेरी
कसमसाती धड़कनों की
गूँजती ख़ामोश सदाओं में
एहसास के शरारे से
तन्हाइयों की गलियाँ रोशन हैं।
एहसासों के गलियारों में भ्स्टकते मन का प्रीत राग। भावपूर्ण रचना प्रिय श्वेता। अच्छा लगा पढ़कर। हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार।
ReplyDeleteउमर की हथेलियों से
फिसलते लम्हों की
चंद गिनती की साँसों पर
तुम्हारी छुअन के महकते निशां हैं
भीगी पलकों के चिलमन में
गुनगुनाती तस्वीर तेरी
कसमसाती धड़कनों की
गूँजती ख़ामोश सदाओं में
एहसास के शरारे से
तन्हाइयों की गलियाँ रोशन हैं। तन्हाइयों में भी रोशनी और उम्मीद की किरण जैसी उत्कृष्ट रचना..
ओह्ह
ReplyDeleteवाह।
वाह बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteभीगे से अहसास !
ReplyDeleteसाँझ की लालिमा जैसे आने वाली कलझांई को महसूस कर रही हैं ।
सुंदर भाव चित्र।