मन के विस्तृत
आसमान पर
भावों के पंछी
शोर मचाते है,
उड़-उड़ कर
जब मन के सारे
मनकों को फैलाते हैं,
शब्दों के बिखरे
मोती चुन-चुनकर
कोरे-सादे पन्नों पर,
तब भाव उकेरे जाते हैं।
रोते-हँसते,गाते-मोहते,
मन जिन गलियों से
गलियों से गुजरता है
उन गली के खुले मुंडेरों पर
सूरज-चंदा को टाँक-टाँक
नग जड़ित तारों की
झिलमिल चुनरी में
जुगनू के नाज़ुक पंखों पर
जलते बुझते तब,
दिवा-रात के स्वप्नों को
कविताओं के शब्द बनाते हैं,
बचपन,यौवन की धूप-छाँव
प्रौढ़,बुढ़ापे से भरा गाँव,
बहते जीवन लहरों की नाव
देख के तन के चीथड़ों को,
जब पलकें पनियाती है
चलते ढलते लम्हों को,
शब्दों की स्याही में डुबाकर,
तब कविताएँ रची जाती है।
#श्वेता🍁
चलते ढलते हर लम्हों को,
ReplyDeleteशब्दों की स्याही में डुबाकर,
तब कविताएँ रची जाती है।..... बहुत खूब!!!! आभार और बधाई!!!
अति आभार आपका विश्वमोहन जी।आपकी सराहना पाना परम आनंद देता है। तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteवाह !!!!!! कविता रचने की भावात्मक पृष्ठभूमि और कलात्मकता की अनिवार्यताओं को आपने बख़ूबी उकेरा है। बार-बार पठनीय रचना आपकी आदरणीया श्वेता जी। ढेरों बधाइयां और शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा। आप सदैव रचनाकारों को अपनी सुंदर प्रतिक्रिया के द्वारा प्रेरित करते है।
Deleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आपका बहुत सारा p.k ji.
Deleteक्या बात है
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन
बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteरचना प्रक्रिया का बारीकी से अवलोकन ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया । बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर,आपका आशीष मिला,बहुत अच्छा लगा।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति....
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी। तहेदिल से शुक्रिया जी।
Deleteवाह.. क्या कहने. बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका ,मेरे ब्लॉग पर आपका अभिनंदन है।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी।
Deleteबचपन,यौवन की धूप-छाँव
ReplyDeleteप्रौढ़,बुढ़ापे से भरा गाँव,
बहते जीवन लहरों की नाव
देख के तन के चीथड़ों को,
जब पलकें पनियाती है
चलते ढलते लम्हों को,
शब्दों की स्याही में डुबाकर,
तब कविताएँ रची जाती है।
वाह कितनी अप्रतिम व्याख्या है। कितनी अपरिमित परिधि है कविताओं की। बहुत सुंदर रचना।
गम ख़ुशी संवेदना की स्याही जब तक कलम को तर नहीं करती तब तक कवितायें पन्नों पर उकेरी ही नहीं जा सकतीं।
बहुत बहुत आभार आपका अमित जी,आपकी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/11/43.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आदरणीय राकेश जी।
Deleteदेख के तन के चीथड़ों को,
ReplyDeleteजब पलकें पनियाती है
चलते ढलते लम्हों को,
शब्दों की स्याही में डुबाकर,
तब कविताएँ रची जाती है।
वाह...बहुत सुंदर।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
Deleteमॉन के विस्मृत आसमान पर भावों के पंछी शोर मचाते हैं श्वेता जी आपकी रचना का एक-एक शब्द सुन्दर भावों से संजोया हुआ है ,सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया ऋतु जी।
Deleteबहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आपका।
ReplyDeleteएक कवि के पूरे भाव को उकेर दी है आपने।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका प्रकाश जी।
Deleteबहुत सुंंदर और सार्थक कविता..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी।
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