मैं कौन ख़ुशी जी लूँ बोलो।
किन अश्क़ो को पी लूँ बोलो।
बिखरी लम्हों की तुरपन को
किन धागों से सी लूँ बोलो।
पलपल हरपल इन श्वासों से
आहों का रिसता स्पंदन है,
भावों के उधड़े सीवन को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।
हिय मुसकाना चाहे ही ना
झरे अधरों से कैसे ख़ुशी,
पपड़ी दुखती है ज़ख़्मों की,
किन धागों से सी लूँ बोलो।
मैं मना-मनाकर हार गयी
तुम निर्मोही पाषाण हुये,
हिय वसन हुए है तार-तार,
किन धागों से सी लूँ बोलो
भर आये कंठ न गीत बने
जीवन फिर कैसे मीत बने,
टूटे सरगम की रागिनी को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।
श्वेता🍁
बहुत बेहतरीन कविता
ReplyDeleteजी,बहुत बहुत आभार आपका,तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteभाव कसक कतरे चुये हैं,
ReplyDeleteशब्द शब्द दिल को छुए हैं.
मन को और कितना खोलूं मै,
सिल गए होठ अब क्या बोलूं मैं!!!!
जी बहुत बहुत आभार आपका,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteबहुत भावपूर्ण कविता श्वेता जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteअब किन शब्दों से मैं तौलू बोलो..
ReplyDeleteसुंंदर राग अनुराग अनुरोध।
बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी,तहेदिल से शुक्रिया जी।
Deleteटूटे सरगम की रागिनी को
ReplyDeleteकिन धागों से सी लूँँ बोलो
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब, भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी रचना....
बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया आपका सुधा जी।
Deleteहिय वसन हुए हैं तार तार
ReplyDeleteकिन धागों से सी लूँ बोलो
वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत !! बहुत खूब आदरणीया ।
बहुत बहुत आभार आपका सर,आपका आशीष मिला अति प्रसन्नता हो रही।
Deleteहिय मुसकाना चाहे ही न, होठों से झरे फिर कैसे खुशी,
ReplyDeleteपपड़ी दुखती है जख़्मों की,किन धागों से सी लूँ बोलो।
... टपाक से चिल्लाकर बोलती मुखर रचना।।।
बधाई और शुभकामनाएँ श्वेता जी।।।।
बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा आपका P.kji.
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteरचनाकर्म में विविधता लाने में माहिर आदरणीया श्वेता जी की यह रचना आश्चर्यचकित करती है। एक सरस ,सरल और सुगढ़ रचना जिसमें नवीनता का एहसास कराते नए शब्द और भावों में दर्द का समुंदर। ऐसी रचनाऐं ज़ेहन में अपना माक़ूल स्थान तलाशती हैं। बधाई एवं शुभकामनाऐं। लिखते रहिये।
बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा,आपके उत्साहवर्धक सराहनीय शब्द ऊर्जा से भर देते है।
Deleteमन को छूते हुए शब्द ... सरस बहता हुआ शब्द प्रवाह ... गुनगुनाता हुआ गीत ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका नासवा जी।आपकी प्रतिक्रिया सदैव सारगर्भित होती है।
Deleteमन की व्यथा को मुंदरतम शब्दों में व्यक्त करती भावुक रचना.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय रंगराज जी।तहेदिल से बहुत सारा शुक्रिया आपका।
Deleteमैं मना-मनाकर हार गयी
ReplyDeleteतुम निर्मोही पाषाण हुये,
हिय वसन हुए है तार तार,
किन धागों से सी लूँ बोलो..
वाह। मोहब्ब्त के दर्दीले जज़्बातों का इससे बेहतर संजीदा तब्सिरा नहीं पढ़ा। एक बहुत ख़ूबसूरत और तरन्नुम मय रचना।
बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका अमित जी।आपकी प्रतिक्रिया का सदैव इंतज़ार रहता है। कृपया उत्साह बढ़ाते रहे।
Deleteबहुत ही प्यारी सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका अनु जी।ब्लॉग पर स्वागत है आपका।कृपया आते रहियेगा।
Deleteप्रिय श्वेता जी ------- मन के भावों को बड़ी ही भावुकता से पिरोया है | बहुत सुंदर लेखन |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका प्रिय रेणु जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका सस्नेह।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार आपका नीतू जी,तहेदिल शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteबहुत ही अच्छी तरह पिरोया है आपने शब्दों को ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया बहुत सारा सोनू जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, तहेदिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को मान देने के लिए।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसारा दर्द उत्तर दिया है शब्दों में आपने हूबहू दिल को छू लेने वाली रचना
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