सम्मोहित मन
निमग्न ताकता है,
एकटुक झरोखे से
मुंडेर की अलगनी पर
बेफिक्र लटके
अभ्रख के टुकड़े से
चमकीले चाँद को,
पिघलती चाँदनी
की बूँदों को पीने को
व्याकुल
हृदय चकोर।
जानता है
मुमकिन नहीं छू पाना
एक कतरा भी
उंगली के पोर से भी
फिर भी अवश हो
बौराया चकोर
चाँद की बेपरवाही
भूलकर
बूँदभर चाँदनी के लिए
सिसकता है,
बंधा अपनी सीमाओं से
सुरमई रात के
ख्वाब का भरम टूटने तक।
#श्वेता🍁
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteभावनाओं को उकेरती हुई
बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteसुंदर भाव लिए मोहक रचना,चश्वेथा जी।।।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार,शुक्रिया आपका बहुत सारा आदरणीय p.k ji.
Deleteवाह ! खूबसूरत रचना ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया
Deleteसर,आपका आशीष मिला।
खूबसूरत रचना, बहुत सुंदर....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया नीतू जी।
Deleteअद्वितीय अद्भुत भावों का चमत्कार देखना हो तो सीधे आप की कोई रचना पढ़ लेनी चाहिए मन चकोर जैसे चांद को पा जाता है।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर।
शुभ दिवस ।
दी,आपकी सराहना पाकर मन अभिभूत हो जाता है,क्या कहे आभार म़े समझ नहीं पाते है।
Deleteदी आपने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है दी।अपना आशीष बनाये रखिएगा दी।
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब रचना...
चकोर बंधा अपनी सीमाओं से सुरमई
रात के भरम टूटने तक......
वाहवाह....
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteमानसिकता का सुंदर चित्रण.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रंगराज जी,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteखूबसूरत और मनमोहक रचना श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी।
Deleteभारतीय वाङग्मय में प्रतिष्ठा के साथ स्थापित है पक्षी चकोर। चन्द्रमा से इसका अगाध प्रेम इससे जुड़ी लोककथाओं में वर्णित है।
ReplyDeleteसाहित्य में मौजूद चकोर पर रचनाओं की कड़ी में आपकी इस ख़ूबसूरत सम्मोहक रचना ने भी चार चाँद लगा दिए हैं। अभिव्यक्ति में भावों का सैलाब उमड़ पड़ा है। अति सुंदर रचना आपकी श्वेता जी। लिखते रहिये मर्मज्ञ रसज्ञ जनों को साहित्य के नए रंगों से परिचय कराने हेतु। प्रकृति से जुड़े बिषय आपकी लेखनी मधुरता का एहसास लेकर आती है वाचक के समक्ष। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आपकी इतनी विस्तृत, सारगर्भित प्रतिक्रिया पर हम क्या कहे आदरणीय रवींद्र जी,मन आपकी सराहना पाकर हर्षित है,कृपया त्रुटियों पर भी अवश्य दृष्टिपात करते रहे,बहुत आभारी रहेगे आपके।
Deleteआभार आभार बहुत सारा आभार।
बहुत सुन्दर रचना है आपकी श्वेता जी। बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनु जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteगहरे एहसास भरी नज़्म ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका संजय जी।
Deleteबहुत ही सुंदर !!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteचाँद की बेपरवाही
ReplyDeleteभूलकर
बूँदभर चाँदनी के लिए
सिसकता है,
बंधा अपनी सीमाओं से
सुरमई रात के
ख्वाब का भरम टूटने तक।
काश.. चकोर के मन के भाव चाँद समझ जाता तो नजारा ही कुछ और होता.
बहुत बहुत सुन्दर रचना.
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ! लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" आज 25 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है..................
http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! देर से सूचना देने हेतु क्षमा चाहती हूँ ।
कोमल भावों और एहसासों से भरी मधुर रचना..
ReplyDeleteचकोर तो बस एक बहाना है -
ReplyDeleteतुम्हे मन का हाल बताना है -
जागूं तो यादों संग बीते दिन
नीदों में तेरे सपनों को ले सो जाना है ---
चकोर के बहाने मन की वेदना सार्थक रूप में शब्दांकित हुई है -- बधाई श्वेता जी --