साँझ की
गुलाबी आँखों में,
डूबती,फीकी रेशमी
डोरियों के
सिंदूरी गुच्छे,
क्षितिज के कोने के
स्याह कजरौटे में
समाने लगे,
दूर तक पसरी
ख़ामोशी की साँस,
जेहन में ध्वनित हो,
एक ही तस्वीर
उकेरती है,
जितना झटकूँ
उलझती है
फिसलती है आकर
पलकों की राहदारी में
ख्याल बनकर।
सांझ की गुलाबी आँखें......
ReplyDeleteवाह!!!
स्याह कजरौटे में....
अद्भुत शब्द संयोजन
बहुत ही सुन्दर ख्याल....
बहुत बहुत आभार सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteजेहन में ध्वनित हो,
ReplyDeleteएक ही तस्वीर............बेनजीर! बेनजीर! ! बेनजीर!!!
हृदयतल से अति आभार आपका विश्वमोहन जी।आपकी सराहना ऊर्जा से भर देती है।
Deleteअद्भुत शब्दों की चूनर, लाज़वाब
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका अपर्णा जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका खूब सारा।
Deleteवाह! बहुत सुंंदर ख्याल..
ReplyDeleteबखूबी शब्दों को पिरोया है।
बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteसच में कहते हैं हम भी वाह...
ReplyDeleteखयाल रखिएगा
सादर
आपके अतुल्य स्नेह से मन अभिभूत है दी।
Deleteलाजवाब ......,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteबहुत खूब........
ReplyDeleteरचना पढ़ते वक़्त उन ख्यालों में खो जाने का मन करता है..
तेरे ख्यालों के ख्यालों में इस कदर खोई,
जैसे खोजी है ख्यालों की दुनिया कोई,
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया का अति आभार आपका प्रिय नीतू जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका सस्नेह।
Deleteउम्दा ख़याल
ReplyDeleteशानदार रचना
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका दी:)
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर।
Deleteसुन्दर !!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीया, ब्लॉग पर आपका स्वागत है।तहेदिल से शुक्रिया।
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