खुल के कह दी बात दिल की तो बवाल
लिख दिये जो ख़्वाब दिल के तो बवाल
इधर-उधर से ढ़ूँढते हो रोज़ क़िस्से इश्क़ के
हमने लफ़्ज़ों में बयां की मोहब्बत तो बवाल
देखकर आँखें झुका ली अदब से तो बवाल
नज़रें मिलाई और हँस के चल दी तो बवाल
भावों से वो खेलते है फ़र्क़ क्या किसी दर्द का
हमने आईना दिखाया हो गया फिर तो बवाल
स्याही ख़ून में डुबोकर लिख दिया तो बवाल
कभी माटी कभी मौसम के रंग दिया तो बवाल
न ख़बर मैं क्या हूँ, वो कहे मेरे लिए अख़बार में
हमने चुप्पी साध ली हर बात पर तो है बवाल
ज़िंदगी की दौड़ में तुम रूको न चलो तो बवाल
मन मुताबिक पल जो चाहा न मिले तो बवाल
वो सजाये महफिलें और कहकहे हों बे-तुकें
हमने बस था मुस्कुराया एक जरा तो बवाल
हमने बस था मुस्कुराया एक जरा तो बवाल
#श्वेता🍁
बवाल का कमाल का प्रयोग रचना के कथ्य के साथ
ReplyDeleteशानदार रचना के लिए बधाई
सादर
अति आभार आपका आदरणीय, आपके आशीर्वचनों से मन प्रसन्न हुआ। सादर आभार।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2852 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
जी बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteबहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteवाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत लिखा .....
ReplyDeleteआभार आपका बहुत सारा शुभा दी।
Deleteअब कुछ लिखें तो भी बवाल, न लिखें तो भी बवाल. बस केवल... कमाल !
ReplyDeleteहदय से अति आभार आपका विश्वमोहन जी।आपकी सराहना सदैव विशेष है।
Deleteवाह ! क्या बात है ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है । बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Delete
ReplyDeleteखुल के कह दी बात दिल की तो बवाल
लिख दिये जो ख़्वाब दिल के तो बवाल
इधर-उधर से ढ़ूँढते हो रोज़ क़िस्से इश्क़ के
हमने लफ़्ज़ों में बयां की मोहब्बत तो बवाल
...बिल्कुल सही कहा आपने! यही तो बवाल है कि खुल के क्युँ कहा? मन की मन में ही रखते तो लोग न हसते!
सुंदर रचना। बवाली बधाई आदरणीय श्वेता जी।
जी बहुत-बहुत आभार ,तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा आपके इस सुंदर सराहना के लिए आदरणीय p.k ji.
Deleteवाहह.. बहुत सुंंदर रचना
ReplyDeleteहर शब्दों में बवाल 👌
बहुत बहुत आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका पम्मी जी।
Delete'भावों से वो खेलते है फ़र्क़ क्या किसी दर्द का
ReplyDeleteहमने आईना दिखाया हो गया फिर तो बवाल'
बेहतरीन रचना श्वेता जी👌👌
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत आभार सर आपका।
Deleteलिखें तो बवाल न लिखें तो बवाल...शब्दों का बवाल पसंद आया श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका संजय जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबवाल पर बवाल...
ReplyDeleteपसंद आया..
सादर...
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर,तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteस्वेता की पोस्ट पर टिप्पणी न की तो बवाल!हा.. हा... हा...
ReplyDeleteहा हा हा...बिल्कुल ज्योति दी आपको तो आना ही होगा मेरी पोस्ट पर। आभार आपका बहुत सारा:)
Deleteसब बवाल है...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रश्मि जी,आपकी प्रतिक्रिया मेरी रचना पर पुरस्कार से कम नहीं,कृपया आते रहें।
Delete
ReplyDeleteबवाल पे कमाल रचना !!!!!!!! प्रिय श्वेता जी बहुत खूब !!!
बहुत आभार रेणु जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteवबाल और बवाल को लेकर ब्लॉग जगत में चर्चा गर्म है जब से बल्ग "पाँच लिंकों का आनन्द" की ओर से हम-क़दम-2 में यह बिषय घोषित किया गया रचनाकारों से रचनाएं आमंत्रित करने हेतु.
ReplyDeleteतमाम उपलब्ध साधनों की पड़ताल से पता चला कि "वबाल" शब्द मूलतः अरबी भाषा का शब्द है जोकि उर्दू भाषा में प्रयुक्त हो रहा है.
दूसरा शब्द "बवाल" एक देशज शब्द है जोकि स्थानीय प्रभाव से उत्पन्न हुआ है और देशज शब्दों की उत्पत्ति का इतिहास अज्ञात होता है ( जैसे लोटा, लड़का,खिड़की आदि).
कुछ विदेशज शब्द जिन्हें आगत शब्द भी रहते हैं जैसे कागज़ (अरबी), ज़िंदगी (फ़ारसी), बाल्टी (पुर्तगाली), चम्मच(तुर्की), अपील (अँग्रेज़ी) हम रोज़ाना प्रयोग में लाते हैं लेकिन इनके उद्गम की चिंता नहीं करते हैं.
कुछ संकर ( दो भाषाओं के शब्दों से मिलकर बना नया शब्द) देखिये- रेल(अँग्रेज़ी)+ गाड़ी(हिन्दी)= रेलगाड़ी, छाया(संस्कृत)+दार(फ़ारसी)= छायादार.
तत्सम से तद्भव में परिवर्तन का एक नियम है कि "व" तत्सम शब्द से तद्भव शब्द बनने पर "ब" हो जाता है यह नियम संस्कृत भाषा से हिन्दी भाषा में आये नियमों पर लागू होता है लेकिन वबाल शब्द पर लागू नहीं होता क्योंकि वह अरबी का मूल शब्द है. उदाहरण- वर्षा= बरसात, वृद्ध= बूढ़ा, वानर=बंदर, विवाह=ब्याह, विद्युत=बिजली आदि.
अतः निष्कर्षतः हम मानते हैं कि बवाल एक देशज शब्द है
अब चर्चा करते हैं आदरणीया श्वेता जी की रचना की तो उन्होंने बिषय को परिभाषित करने की भरसक कोशिश बड़े ही रोचक तरीके से की है. व्यंग का मनोविनोदी रूप भी है, जीवन के विरोधाभास भी हैं जोकि कलात्मकता के निखार के साथ उभरे हैं. जन जन के मनोभाव समेट लिये हैं इस रचना में आदरणीया श्वेता जी ने.
बधाई एवं शुभकामनायें.
शब्द का अर्थ
Deleteवबाल : पुं० [अ०] १. बोझ। भार। २. बहुत बड़ी विपत्ती या संकट। ३. झगड़े-बखेड़े की बात। झंझट। ४. दैवी प्रकोप। ५. पाप का फल। मुहावरा– (किसी का) बवाल पड़ना=दुखिया की आह पड़ना।
समानार्थी शब्द- उपलब्ध नहीं
Reference- pustak.org
Deleteआदरणिय रविन्द्र सिहँ जी यादव आपने बहुत ही सुंदर तरीके से आपने समझाने का प्रयास किया है वबाल और बवाल के बारे मे आपको बहुत बहुत बधाई आशा है आगे भी रचना कारो का इसी तरहा मार्गदर्शन करते रहेंगे ।।
Deleteआदरणीय रवींद्र जी बवाल से उत्पन्न बवाल की जिज्ञासा शांत करने के लिए खूब शोध किया है आप जैसे जागरूक साहित्यकार हो तो फिर हमारे साहित्यक ज्ञान में वृद्धि होना निश्चंत है। आपका तहेदिल से आभार रवींद्र जी आपने बहुत अच्छे से समझाया। निश्चत ही पाठक लाभावान्वित होंगे।
Deleteरचना पर आपकी सराहना के लिए हृदयतल से आभार आपका। कृपया अपनी शुभकामनाओं का साथ बनाये रखें सदा।
इधर-उधर से ढ़ूँढते हो रोज़ क़िस्से इश्क़ के
ReplyDeleteहमने लफ़्ज़ों में बयां की मोहब्बत तो बवाल....
हर पंक्ति सुंदर बन पड़ी है। बहुत अच्छा लिखा आपने !
बहुत-बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत सुंदर रचना ...
ReplyDeleteखूबसुरती से इस्तेमाल किया बवाल को
शब्दों से सजा दिया सवाल को
बवाल पर सवाल उठे तो बवाल होना ही था
सवालों के भाँवर में बवाल खोना ही था
बहुत बहुत आभार प्रिय नीतू,
Deleteआपने भी सुंदर पंक्तियाँ लिखी👌👌
बहुत शुक्रिया आपका।
तुम्हारे हर प्रश्न का मैं सवाल हो गया
ReplyDeleteकुछ पूछा मैंने तो बस बवाल हो गया
तुम्हारी बन्दगी में गुजार दी जिंदगी मैंने
चाहा दो पल का साथ बवाल हो गया।
वाह्ह्ह...बहुत खूब प्रियम् जी...सुंदर पंक्तियाँ हैं। आभार आपका।
Deleteवाह खुबसूरत बवाल हो गया।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी रचना.!
बहुत बहुत बवाली आभार अनु...:)
Deleteवाह बेहतरीन लेखन ...👌👌👌
ReplyDeleteज़िंदगी एक बवाल है
बवाल ज़िंदगी
हाँ भी एक बवाल है
ना भी बवाले ज़िंदगी !
वाह्ह्ह...क्या.खूब..आपका तो जवाब नहीं प्रिय इन्दिरा जी..बहुत अच्छी प्रतिक्रिया आपकी👌
Deleteआभार आपका बहुत सारा तहेदिल से शुक्रिया।
राह में चलते एक लड़की को देख लिया तो हुआ बवाल,
ReplyDeleteपिट दिया बिना जाने कि कौन है वो मेरी तो उठा सवाल,
आधुनिक समाज का दोष या गंदे नजर के परत का खेल,
भीड़ से किसी ने कहा कि वो है इसकी बहन तो हुआ बवाल
जी अच्छी पंक्तियाँ आपकी प्रकाश जी।
Deleteआभार आपका बहुत सारा।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/53_22.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका राकेश जी,सुंदर रचनाओं के गुलदस्ते में मेरा भी एक फूल लगाने के लिए।
Deleteशानदार को शानदार से शानदार और क्या लिखूं
ReplyDeleteछूलो आसमानों को उड कर इस से बैहतर पयाम क्या लिखूं।
अप्रतिम अद्भुत।
बहुत बहुत बहुत आभार दी,आपका ब्लॉग पर आना ही पुरस्कार है मेरी रचना का।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया दी बहुत सारा।
वाह श्वेता जी शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह खुबसूरत बवाल हो गया।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी रचना Thanks For Sharing बढ़िया पोस्ट