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Friday, 20 April 2018

क़दमों की आहट

साँझ की राहदारी में
क्षितिज की स्याह आँखों में गुम
ख़्यालों की सीढियों पर बैठी
याद के क़दमों की आहट टटोलती है।

आसमां की ख़ामोश बस्ती में
उजले फूलों के वन में भटकती
पलकों के भीतर डूबती आँखों से
पिघलते चाँद की तन्हाईयाँ सुनती है।

पागल समुंदर की लहरें
चाँद की उंगलियां छूने को बेताब
साहिल पर सीपियाँ बुहारती चाँदनी संग
रेत पर खोये क़दमों के निशां चुनती है।

मन की मरीचिका में
तपती मरुभूमि में दिशाहीन भटकते
बूँदभर चाहत लिए उम्र की पगडंडियों पर
बिछड़े क़दमों को ढूँढती नये ख़्वाब बुनती है।


    ---श्वेता सिन्हा

17 comments:

  1. प्रकृति के साथ अपने मन की संवेदनाओं का बेहतर शब्द संयोजन शुभकामनाएं स्वेता जी

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  2. बहुत बढ़िया लिखा प्रिय श्वेता जी
    मुझे प्रकृति लिखने के लिए कभी आकर्षित नही करती
    पर ये आप की रचना की ख़ूबसूरती है
    जो उसे इतनी ख़ूबसूरती से सजाती है
    की दिल दो पल के लिए ही सही
    पर उस एहसास को जीता है
    जिस एहसास में डूबकर आप ने इस रचना को लिखा

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  3. वाह!श्वेता ,बहुत सुंदर ! लाजवाब शब्द संयोजन ...आपकी हर रचना बहुत ही खूबसूरत होती है ।

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  4. मन की मरीचिका में
    तपती मरुभूमि में दिशाहीन भटकते
    बूँदभर चाहत लिए उम्र की पगडंडियों पर
    बिछड़े क़दमों को ढूँढती नये ख़्वाब बुनती है...
    मन के भावों को व्यक्त करती बेहतरीन रचना

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  5. सुन्दर शब्दचित्र.
    बधाई एवं शुभकामनायें.

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  6. वाह...
    कल रविवार की प्रस्तुति की शोभा बढ़ाएगी ये कविता
    सादर

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  7. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. यही ज़िन्दगी है । सूंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।

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  9. मन और प्रकृति का अद्भुत संगम
    बेहद उम्दा
    खूबसूरत रचना 👌👌

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  10. वाव्व स्वेता, प्रकृति का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने।

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  11. ख़्यालों की सीढियां, पिघलते चाँद की तन्हाई,चाँद की उँगलियाँ ,उम्र की पगडंडियाँ....
    वाह!श्वेता जी क्या कमाल लिखती हैं आप.....समांं सजीव हो उठता है पाठक के मन में...लाजवाब शब्दविन्यास...
    वाह!!!!

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  12. प्रकृति के प्रति असीम अनुराग संजोये बड़ी सुन्दर कदमों की आहट 😊

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  13. Bahut sundar kavita. I like your nature poetry. Excellent.

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  14. पागल समुंदर की लहरें
    चाँद की उंगलियां छूने को बेताब
    साहिल पर सीपियाँ बुहारती चाँदनी संग
    रेत पर खोये क़दमों के निशां चुनती है-- प्रिय श्वेता अत्यंत सुकोमल भावों से गुंथा अप्रितम लेखन!!!!!!!!!! सस्नेह ---

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  15. यादें तनहाइयाँ और प्रेम में डूबी साँझ ...
    बीते क़दमों की तलाश बहुत दूर तक ले जाती है जहाँ प्रेम का गहरा समु डर होता है इंतज़ार करता ...
    गहरी रचना ...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।