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Wednesday, 16 May 2018

पेड़ बचाओ,जीवन बचाओ

हाँ,मैंने भी देखा है
चारकोल की सड़कें
फैल रही ही है
सुरम्य पेड़ों से आच्छादित
सर्पीली घाटियों में,
सभ्य हो रहे है हम
निर्वस्त्र,बेफ्रिक्र पठारों के
छातियों को फोड़कर समतल करते,
गाँवों की सँकरी
पगडंडियों को चौड़ा करने पर,
ट्रकों में भरकर
शहर उतरेगा ,
ढोकर ले जायेगा वापसी में
गाँव का मलबा,
हाँ ,मैंने महसूस किया है 
परिवर्तन की  
आने की ख़बर से
डरे-डरे और उदास 
खिलखिलाते पेड़
रात-रात भर रोते पठार और
बिलखते खेतों को,
जाने कौन सी सुबह
उनके क्षत-विक्षत अवशेष
बिखर कर मिल जायेे माटी में
हाँ,मैंने सुना है उन्हें कहते हुये
सभ्यता के विकास के लिए
उनकी मौन कुर्बानियाँ
मानव स्मृतियों में अंकित न रहे
पर प्रकृति कभी नहीं भूलेगी
उसका असमय काल कलवित होना
शहरीकरण के लिबास पहनती सड़कों पर
जब भर जायेगा
विकास को बनाने के बाद बचा हुआ 
ज़हरीला धुआँ
तब याद में मेरी
कंकरीट खेत के मेड़ों पर
लगाये जायेगे वन
"पेड़ लगाओ,जीवन बचाओ"
के नारे के साथ।

   ----श्वेता सिन्हा






20 comments:

  1. बेहतरीन रचना
    साधुवाद
    सादर

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    1. बहुत-बहुत आभारी है हम दी।
      आपका स्नेह पाना सदैव विशेष है।
      आभार
      सादर

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  2. वाह!!
    पेड़ों की कटाई और पर्यावरण से छेड-छाड़ के भीषण दुष्प्रभाव का सचित्र सा खाका खिंचा है आपने श्वेता लयबद्ध गतिमान सुंदर काव्य।

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    1. आभार आभार अति आभार दी:)
      एक कोशिश है बस दी
      आपको अच्छी लगी प्रयास सफल हुआ।
      स्नेहाशीष बनाये रखें।

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.05.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2973 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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    1. जी बहुत आभारी है आपके आदरणीय।
      सादर।

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  4. बहुत सुंदर रचना.. एक संदेश के साथ।

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    1. बहुत बहुत आभार.आपका पम्मी जी।
      तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  5. वाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर रचना का स।जन किया आपनें ..।

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका शुभा दी।
      तहेदिल से शुक्रिया आपके स्नेह का:)

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  6. स्वेता, पेडों का महत्व प्रतिपादित करती बहुत ही सुंदर रचना का सृजन किया हैं तुमने। बधाई।

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    1. बहुत - बहुत आभार आपका ज्योति दी।
      तहेदिल से शुक्रिया।

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  7. Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ आपकी रश्मि जी।

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  8. बेहतरीन रचना

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  9. पेड़ बचाना और पर्यावरण को संरक्षित करना बहुत आवश्यक है...
    पर्यावरण पर गंभीर रचना

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  10. सच पूछो तो विकास की सतत प्रक्रिया में पेड़ सहायक हैं ... इंसान को बचाते हैं ताज़ा रखते हैं जीवन देते हैं पर मानव ने क्षणिक विकास के लिए उसका महत्व नहि समझा ... सामयिक रचना है ..।

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  11. प्रिय श्वेता -- आपकी ये सुंदर रचना उसी दिन पढ़ ली थी | पढ़कर मैं हैरान सी रह गई | कितनी बड़ी बात कितनी सरलता से कह दी -----
    गाँवों की सँकरी
    पगडंडियों को चौड़ा करने पर,
    ट्रकों में भरकर
    शहर उतरेगा ,
    ढोकर ले जायेगा वापसी में
    गाँव का मलबा,----------

    हर पंक्ति कंक्रीट जंगल के विस्तार ले फलस्वरूप हरे भरे गाँव के मिटते अस्तित्व के शोक की परिचायक है |प्रकृति को ना संभाला और सजोया गया तो बड़ी भयावह तस्वीर होगी आने वाले समय में |इस रचना के लिए ही नहीं बल्कि हर रचना के लिए मेरी शुभकामनाये तो हैं ही -साथ में मेरा प्यार |

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  12. प्रकृति से छेड़छाड़ मनुष्य जीवन पर कितना भारी पड़ रही है ! अंधाधुँध तरक्की का नशा गाँवोगाँवों की प्राकृतिक आबो हवा को बिगाड़ने पर आमादा है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।