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Thursday, 10 May 2018

जफ़ा-ए-उल्फ़त

पूछो न बिना तुम्हारे कैसे सुबह से शाम हुई
पी-पीकर जाम यादों के ज़िंदगी नीलाम हुई

दर्द से लबरेज़ हुआ ज़र्रा-ज़र्रा दिल का
लड़खड़ाती हर साँस ख़ुमारी में बदनाम हुई

इंतज़ार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
तमाम कोशिशें सबको पाने की सरेआम हुई

क्या कहूँ वो दस्तूर-ए-वादा  निभा न सके 
वफ़ा के नाम पर रस्म-ए-मोहब्बत आम हुई

ना चाहा पर दिल ने तेरा दामन थाम लिया
तुझे भुला न सकी हर कोशिश नाकाम हुई

बुत-परस्ती की तोहमत ने बहुत दर्द दे दिया
जफ़ा-ए-उल्फ़त मेरी इबादत का इनाम हुई

    -श्वेता सिन्हा


19 comments:

  1. वाआआह...
    आफ़रीन...
    बेहद उम्दा...
    सादर

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  2. एक अच्छी शुरुआत
    बेहतरीन नज़्म
    सादर

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  3. वाह स्वेता जी उम्दा ...शुभकामनाये

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  4. आफरीन ...👍👍👍👍👍👍

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  5. वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना।

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  6. वाह!!वाह!!बहुत ही सुंंदर नज्म... वाह!!श्वेता!

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  7. वाह वाह बहुत खूब लिखा श्वेता. बधाई

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  8. बेहतरीन....., बेहतरीन......., और बस बेहतरीन😊

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  9. वाह श्‍वेता जी , क्‍या खूब कहा है एक एक पंक्‍ति में छुपी है गहराई ...बुत-परस्ती की तोहमत ने बहुत दर्द दे दिया

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  10. बेहतरीन गजल, उम्दा अशआर।।।। हार्दिक बधाइयाँ

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  11. खूबसूरत गज़ल ! एहसासों को नजाकत से बयान करती हुई....

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  12. जैसे पहले शेर में नशे का भावार्थ झलक रहा है लेकिन नशा शब्द नहीं है..
    बस ऐसे ही अन्य शब्दो को लिए बगैर उनका भावार्थ झलके तो भी वह रचना इस टॉपिक पर हो सकती थी।
    आपकी रचना काफी हद्द तक अच्छी लगी।

    ब्लॉग पर कई लोग ऐसे भी हैं जो उर्दू जबाँ नहीं जानते उनके लिए मायने लिख दिए जाएं तो ये रचना ओर कई दिलों को छू सकती है।

    आभार ।

    पांच लिंक में शामिल नही है ये रचना ये अचरज की बात है।

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  13. बेहतरीन नज़्म स्वेता जी

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  14. उम्दा शेर
    बेहतरीन ग़ज़ल

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  15. प्रेम को भूलना आसान कहाँ होता है ...
    लाजवाब शेर ...

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  16. वाह !!प्रिय श्वेता बेहद उम्दा अशार और लाजवाब अंदाजे बयाँ !!!!! इस बार भी आपने अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन किया है | सराहनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई और मेरा प्यार |

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  17. क्या बात है ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।