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Thursday, 12 July 2018

तुम नील गगन में


आँखों में भर सूरत उजली
मैं स्वप्न तुम्हारे बुनती हूँ
तुम नील गगन में रहते हो
मैं धरा से तुमको गुनती हूँ

न चाहत तुमको पाने की
न दुआ है संग मर जाने की
तुम हँसकर एक नज़र देखो
ख़्वाहिश दिल की मैं सुनती हूँ

तेरा साथ मुझे अपना-सा लगे
गुलकंदी इक सपना-सा लगे
रिमझिम बरसे रस चंदनियाँ
तेरी महक साँस में चुनती हूँ

 तुम्हें देख के आहें भरती हूँ
 सच कहती हूँ तुमपे मरती हूँ
 उजले लबों की छुअन तेरी
 छलकी,बहकी मैं बहती हूँ

मेरे चाँद ये दिल था वैरागी
तुझसे ही मन की लगन लागी
मन वीणा के निसृत गीतों में
प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती हूँ

   -श्वेता सिन्हा


18 comments:

  1. तुम नील गगन में रहते हो
    मैं धरा से तुमको गुनती हूँ.......विलक्षण लौकिक बिम्ब विधान और सरस प्रांजल प्रणय गान!!!

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  2. अप्रतिम रचना, निस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा

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  3. हृदय से निर्झर बहते शब्द
    बहुत उम्दा

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  4. ओह!! चातकी सा शाश्वत समर्पण भाव।
    दूर से बस देखा किये हम
    रस सुधा बस पिया किये हम ।
    बहुत खूबसूरत श्रृंगार रचना ।

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  5. मेरे चाँद ये दिल था वैरागी
    तुझसे ही मन की लगन लागी
    मन वीणा के निसृत गीतों में
    प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती हूँ
    बेहद खूबसूरत रचना

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  6. बहुत ही खूबसूरत रचना, अप्रतिम भाव संयोजन

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  7. चांद पर आप ने बहुत सी रचनायें लिखी हैं और हर रचना बेजोड है
    इस से आप का चांद के प्रति लगाव स्पष्ट होता है आप की खास रचनाओं में एक और रचना शामिल हो गई ...बहुत खूब

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  8. मेरे चाँद ये दिल था वैरागी
    तुझसे ही मन की लगन लागी
    मन वीणा के निसृत गीतों में
    प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती
    बहुत ही सुंदर प्रस्तूति, स्वेता।

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  9. एक बार पुनः अच्छी प्रस्तुति।

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  10. मन वीणा के निसृत गीतों में
    प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती हूँ.... बहुत ही सुंदर रचना स्वेता जी

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  11. इश्क में इबादत का रंग चढ़ गया
    वाह दीदी जी बेहद खूबसूरत लाजवाब सुंदर रचना 👌
    सादर नमन शुभ रात्रि

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  12. बहुत अच्छी रचना.
    अभिनंदन।

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  13. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/07/78.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  14. प्रेम में पगे शब्द ...
    प्रेम में रंगे वैरागी मन को ही चाँद की वीणा सुनाई देती है ...
    प्रेम को आलोकिक रूप देना आपकी रचनाओं की विशेषता है ... और ये हमेशा मन को छू जाती हैं ...

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  15. रचना में भावों का निर्झर बह निकला है। मनोभावों को उत्कृष्टता प्रदान करती ह्रदय तल की गहराइयों से
    उभरते एहसासात का मुज़ाहिरा करती लयबद्ध रचना जिसे अल्हड़ मन गुनगुनाने को मचल उठता है।

    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  16. प्रेम का आलौकिक प्रणय गान प्रिय श्वेता !!!!और सच लिखा आदरणीय रविन्द्र जी ने गाने गुनगुनाने योग्य मधुरता भरा गान है ये रचना | मेरा प्यार और शुभकामनायें| !

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  17. वाह ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।