आँखों में भर सूरत उजली
मैं स्वप्न तुम्हारे बुनती हूँ
तुम नील गगन में रहते हो
मैं धरा से तुमको गुनती हूँ
न चाहत तुमको पाने की
न दुआ है संग मर जाने की
तुम हँसकर एक नज़र देखो
ख़्वाहिश दिल की मैं सुनती हूँ
तेरा साथ मुझे अपना-सा लगे
गुलकंदी इक सपना-सा लगे
रिमझिम बरसे रस चंदनियाँ
तेरी महक साँस में चुनती हूँ
तुम्हें देख के आहें भरती हूँ
सच कहती हूँ तुमपे मरती हूँ
उजले लबों की छुअन तेरी
छलकी,बहकी मैं बहती हूँ
मेरे चाँद ये दिल था वैरागी
तुझसे ही मन की लगन लागी
मन वीणा के निसृत गीतों में
प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती हूँ
-श्वेता सिन्हा
तुम नील गगन में रहते हो
ReplyDeleteमैं धरा से तुमको गुनती हूँ.......विलक्षण लौकिक बिम्ब विधान और सरस प्रांजल प्रणय गान!!!
अप्रतिम रचना, निस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा
ReplyDeleteहृदय से निर्झर बहते शब्द
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ओह!! चातकी सा शाश्वत समर्पण भाव।
ReplyDeleteदूर से बस देखा किये हम
रस सुधा बस पिया किये हम ।
बहुत खूबसूरत श्रृंगार रचना ।
मेरे चाँद ये दिल था वैरागी
ReplyDeleteतुझसे ही मन की लगन लागी
मन वीणा के निसृत गीतों में
प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती हूँ
बेहद खूबसूरत रचना
बहुत ही खूबसूरत रचना, अप्रतिम भाव संयोजन
ReplyDeleteचांद पर आप ने बहुत सी रचनायें लिखी हैं और हर रचना बेजोड है
ReplyDeleteइस से आप का चांद के प्रति लगाव स्पष्ट होता है आप की खास रचनाओं में एक और रचना शामिल हो गई ...बहुत खूब
मेरे चाँद ये दिल था वैरागी
ReplyDeleteतुझसे ही मन की लगन लागी
मन वीणा के निसृत गीतों में
प्रिय चाँद की धुन मैं सुनती
बहुत ही सुंदर प्रस्तूति, स्वेता।
एक बार पुनः अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमन वीणा के निसृत गीतों में
ReplyDeleteप्रिय चाँद की धुन मैं सुनती हूँ.... बहुत ही सुंदर रचना स्वेता जी
इश्क में इबादत का रंग चढ़ गया
ReplyDeleteवाह दीदी जी बेहद खूबसूरत लाजवाब सुंदर रचना 👌
सादर नमन शुभ रात्रि
बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteअभिनंदन।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/07/78.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteप्रेम में पगे शब्द ...
ReplyDeleteप्रेम में रंगे वैरागी मन को ही चाँद की वीणा सुनाई देती है ...
प्रेम को आलोकिक रूप देना आपकी रचनाओं की विशेषता है ... और ये हमेशा मन को छू जाती हैं ...
रचना में भावों का निर्झर बह निकला है। मनोभावों को उत्कृष्टता प्रदान करती ह्रदय तल की गहराइयों से
ReplyDeleteउभरते एहसासात का मुज़ाहिरा करती लयबद्ध रचना जिसे अल्हड़ मन गुनगुनाने को मचल उठता है।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
प्रेम का आलौकिक प्रणय गान प्रिय श्वेता !!!!और सच लिखा आदरणीय रविन्द्र जी ने गाने गुनगुनाने योग्य मधुरता भरा गान है ये रचना | मेरा प्यार और शुभकामनायें| !
ReplyDeleteवाह ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
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