श्यामल नभ पर अंखुआये
कारे-कारे बदरीे गाँव
फूट रही है धार रसीली
सुरभित है बरखा की छाँव
डोले पात-पात,बोले दादुर
मोर,पपीहरा व्याकुल आतुर
छुम-छुम,छम-छम नर्तन
झाँझर झनकाती बूँद की पाँव
किलकी नदियाँ लहरें बहकी
जलतरंग जल पर चहकी
इतराती बलखाती धारा में
गुनगुन गाती मतवारी नाव
गीले नैना भर-भर आये
गीला मौसम गीली धरती
न हरषाये न बौराये
बरखा बड़ी उदास सखी
आवारा ये पवन झकोरे
अलक उलझ डाले है डोरे
धानी चुनरी चुभ रही तन को
मन संन्यासी आज सखी
बैरागी का चोला ओढ़े
गंध प्रीत न एक पल छोड़े
अंतस उमड़े भाव तरल
फुहार व्यथा अनुराग सखी
--श्वेता सिन्हा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसच है बारिश में मन हर्षित हो जाता है, साथ ही विरह की वेदना भी तीव्र हो जाती है
अति आभार आपका लोकेश जी।
ReplyDeleteसही कहा आपने...।
हृदयतल से शुक्रिया।
बहुत सुंदर शब्द शिल्प....बारिश इस कविता में और भी खूबसूरत हो गई है....
ReplyDeleteअति आभार आपका दी,आपके स्नेहिल शब्द यन तृप्त कर देते है।
Deleteहृदयतल से बहुत शुक्रिया।
किलकी नदियाँ लहरें बहकी
ReplyDeleteजलतरंग जल पर चहकी
इतराती बलखाती धारा में
गुनगुन गाती मतवारी नाव वाह बहुत ही बेहतरीन रचना
सादर आभार आपका अनुराधा जी।
Deleteबूहद शुक्रिया आपका।
हर्षित मन बरखा में आतुर मचल जाता है ...
ReplyDeleteप्रेम महक जाता है और विरह की अवस्था हो तो बैराग जाग जाता है ... लाजवाब रचना है ...
जी,सादर आभार आपका।
Deleteतहेदिल से बेहद शुक्रिया।
बूंदों की झांझर ऐसी झनकी
ReplyDeleteमन की विरहा बोल गई
बांध रखा था जिस दिल को
बरखा बैरन खोल गई।
मनोहारी बरखा का मनोरम वर्णन साथ मे विरह की पीड़ा सुंदरता से उरेका है श्वेता आपने।
बहुत प्यारी रचना।
वाहह दी बहुत सुंदर पंक्तियाँ...👌
Deleteरचना का मर्म समझा आपने...सादर आभार दी।
तहेदिल से बेहद शुक्रिया।
आवारा पवन,उदास बरखा,रसीली लहरे,बलखाती धारा,नायिका का सन्यासी मन और उसके भावों को समेटती अनुप्रासिक शब्द योजना का लालित्य ....वाह!बहुरंगी परिधानों में खिलती रचना! बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteरचना के शब्द विन्यास पर मनमोहक प्रतिक्रिया दे कर आपने रचना का मान बढ़ा दिया है। आपकी प्रतिक्रिया सदैव ऊर्जा से भर जाती है। कृपया स्नेह बनाये रखे।
Deleteसादर आभार, हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।
सादर आभार अमित जी।
ReplyDeleteतहेदिल से बेहद शुक्रिया आपके उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार पम्मी जी। तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत सुंदर रचना श्वेता। बरखा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं तुमने।
ReplyDeleteसादर आभार दी। बहुत शुक्रिया।
Deleteवाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरत शब्दों से सजी रचना ...।
ReplyDeleteसादर आभार दी। बेहद शुक्रिया।
Deleteशब्दों को सजाने में आप का जवाब नही सखी
ReplyDeleteरचना में दर्द भले ही हो पर आप उसे भी खूबसूरत बना देती हैं
लाजवाब कल्पना शक्ति का उदाहरण है आप की रचना 👌👌👌
अति आभार आपका नीतू।आपकी स्नेहासिक्त सराहना ने हृदय प्रफुल्लित कर दिया।
Deleteतहेदिल से बहुत शुक्रिया।
"बैरागी का चोला ओढ़े
ReplyDeleteगंध प्रीत न एक पल छोड़े
अंतस उमड़े भाव तरल
फुहार व्यथा अनुराग सखी"
वाह आदरणीय दीदी जी बेहद खूबसूरत रचना
सुंदर शब्द को पिरो कर लाजवाब प्रस्तुति दी आपने
वाह मनभावन 👌
अति आभार आपका आँचल,हृदयतल से बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteगीले नैना भर-भर आये
ReplyDeleteगीला मौसम गीली धरती
न हरषाये न बौराये
बरखा बड़ी उदास सखी
....बरखा का मनोरम वर्णन
अति आभार आपका संजय जी। बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteसुन्दर शब्द और भावों की बारिश से मन भीग गया ... बहुत खूब श्वेता जी
ReplyDeleteअति आभार आपका वंदना जी,हृदयतल से शुक्रिया।
Deleteवाह !!!!! सुंदर सलोनी बरखा और कोमल मनमोहक शब्दावली !!!!!!!! बरखा सी रिमझिम रचना प्रिय श्वेता | कोई गा दे तो मधुर गीत बन जाये |
ReplyDeleteसादर आभार दी:)
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदैव रचना को.विशेष बना जाती है।
वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यहाँ गर्मी से झुलसते हुए ये बरखा अच्छी लगी । शारीरिक नहीं तो मानसिक रूप से ज़रूर भीग गए ।
ReplyDeleteवैसे इस रचना में 3 बंध अलग मोड पर खत्म हो रहे हैं और बाकी तीन अलग ..... ऐसा क्यों ?