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Wednesday, 21 November 2018

आपके एहसास ने


आपके एहसास ने जबसे मुझे छुआ है
सूरज चंदन भीना,चंदनिया महुआ है

मन के बीज से फूटने लगा है इश्क़
मौसम बौराया,गाती हवायें फगुआ है

वो छोड़कर जबसे गये हमको तन्हा
बेचैन, छटपटाती पगलाई पछुआ है

लगा श्वेत,कभी धानी,कभी सुर्ख़,
रंग तेरी चाहत का मगर गेरुआ है

क्या-क्या सुनाऊँ मैं रो दीजिएगा 
तड़पकर भी दिल से निकलती दुआ है

जीवन पहेली का हल जब निकाला 
ग़म रेज़गारी, खुशी ख़ाली बटुआ है

  -श्वेता सिन्हा

14 comments:

  1. वाह !बहुत खूब सखी 👌

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  2. बहुत ही बेहतरीन

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  3. वो छोड़कर जबसे गये हमको तन्हा
    बेचैन, छटपटाती पगलाई पछुआ है

    लगा श्वेत,कभी धानी,कभी सुर्ख़,
    रंग तेरी चाहत का मगर गेरुआ है
    बहुत खूब...श्वेता दी।

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  4. बहुत खूब
    बेहतरीन रचना जी।

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  5. वाहः वाहः
    बहुत ही शानदार

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  6. वाह!!!!
    क्या बात है!!!!
    बहुत लाजवाब....

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  7. वो छोड़कर जबसे गये हमको तन्हा
    बेचैन, छटपटाती पगलाई पछुआ है.... बहुत सुंदर। लेकिन
    पहिले पछुआ पगलाता है
    पाछे पुरवा पग लाता है।
    सूखी पाकी धरती को धो
    पोर पोर प्यार भर जाता है।

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  8. ख़ुशी ख़ाली बटुआ ...
    बहुत लाजवाब शेर बुने हैं ... नई उपमाएँ और प्रेम का अहसास लिए दिलकश शेर हैं सभी ...

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  9. लगा श्वेत,कभी धानी,कभी सुर्ख़,
    रंग तेरी चाहत का मगर गेरुआ है
    !!!!!!!!
    बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना प्रिय श्वेता | सस्नेह शुभकामनाएं |

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  10. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 23 नवम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1225 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  11. वाह क्या कहने!श्वेता ।
    सच जब सूरज चंदन की शीतलता दे और चांदनी मदहोशी तो समझो मौसम ही नही मन ही बौराया है,
    अद्भुत नव अंलकारों से सजी शर्मिली दुल्हन सी नजाकत भरी गजल अपनी झांझर झंकार रही है और कविता सी सरस दिल में उतर गई है।
    निशब्द!!

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  12. प्रिय श्वेता -- मनमोहक अशारों से सजी गज़ल के क्या कहने !!!!! एक से बढ़कर एक शेर और मार्मिक भाव रचना को बहुत ही उत्कृष्ट बना रहे हैं | ये शेर मुझे खास तौर पर बहुत ही प्यारा लगा ----
    लगा श्वेत,कभी धानी,कभी सुर्ख़,
    रंग तेरी चाहत का मगर गेरुआ है!!!!!!
    गेरुए इश्क में लिपटी रचना के लिए हार्दिक बधाई और प्यार |

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।