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Thursday, 7 February 2019

तुम ही कहो

हाँ ,तुम सही कह रहे हो
फिर वही घिसे-पिटे 
प्रेमाव्यक्ति के लिए प्रयुक्त
अलंकार,उपमान,शब्द
शायद शब्दकोश सीमित है;
प्रेम के लिये।
अब तुम ही कोई
नवीन विशेषण बतलाओ
फूल,चाँद, चम्पई,सुरमई
एहसास,अनुभूति
दोहराव हर बार
दिल के एहसास 
बचपना छोड़ो
उम्र का लिहाज़ करो
महज़ साँसों का आना-जाना
कुछ महसूस कैसे होता है
धड़कन को स्टेथेस्कोप से चेक करो
अगर सूझे तो कोई
सिहरन का अलग राग बताओ
शारीरिक छंद मे उलझे हो
स्पंदन मन का समझ नहीं आता
प्रेम की परिभाषा में
रंग,बहार,मुस्कान की
और कितनी परत चढ़ाओगे
प्रेम की अभिव्यक्ति में 
कुछ तो नयापन लाओ
बदलाव ही प्रकृति है
आँखों की बाते
साँसों की आहटें,
स्पर्श की गरमाहटें
अदृश्य चाहतें
उनींदी करवटें
बारिश की खुशबू,
यथार्थ की रेत से रगड़ाकर
लहुलूहान प्रेम
क्षणिक आवेश मात्र
मुँह चिढ़ाता उपहास करता है 
पर फिर भी
आकर्षण मन का कहाँ धुँधलाता है?
शाब्दिक परिभाषा में
प्रेम का श्रृंगार पारंपरिक सही
मन की वृहत भावों को समझाने के लिए
मुझे यही भाषा आती है
सुनो,
तुम ही अब परिभाषित करो
नया नाम सुझाकर
प्रेम को उपकृत करो।

#श्वेता सिन्हा



18 comments:

  1. आकर्षण मन का कहाँ धुँधलाता है?
    क्यों धुंधला हो... जीने के बहाने हैं
    अति सुंदर लेखन

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    1. दी दी ससुस्वागम् हम बहुत खुश आपकी प्रतिक्रिया टा आशीष पाकर..बहुत बहुत आभारी हूँ...हृदयतल से बहुत शुक्रिया दी।

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  2. शारीरिक छंद मे उलझे हो
    स्पंदन मन का समझ नहीं आता
    प्रेम की परिभाषा में
    रंग,बहार,मुस्कान की
    और कितनी परत चढ़ाओगे

    जी बिल्कुल हृदय की धड़कनों के जो जितना करीब हो पाता है,वह प्रेम के यथार्थ को उतना ही शीघ्रतापूर्वक समझ पाता है।
    मन के स्पंदन का संबंध लौकिक एवं अलौकिक दोनों ही प्रकार के सुख से है। आश्रम में था, तो प्रत्येक स्पंदन पर दृष्टि रखने को कहा जाता था।
    तब ये सांसें मंद मंद चला करती थीं और लौकिक प्रेम में इसकी गति काफी तीव्र हो जाती है। चाहे तो स्टेथेस्कोप से चेक कर लें।
    बहुत ही सुंदर और रहस्यपूर्ण रचना, प्रणाम।

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  3. वाहः बहुत शानदार

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  4. प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
    हम ने देखी है ...

    प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
    एक खामोशी है सुनती है कहा करती है
    ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं
    नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
    सिर्फ़ एहसास है ये।
    बहुत सुंदर गूढ़ रचना ।

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  5. सुनो,
    तुम ही अब परिभाषित करो
    नया नाम सुझाकर
    प्रेम को उपकृत करो।
    बहुत कुछ लिखना चाहती हूँ, पर नहीं लिख पा रही... आज आपकी इन पंक्तियों को ले जा रही हूँ।
    पिछले साल शायद ये लिखा था मैंने -
    परिभाषित प्रेम को कैसे करूँ,
    शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?
    जो वृंदावन की माटी है
    उसको श्रृंगार कहूँ कैसे ?

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  6. प्रिय श्वेता -- प्रेम के लिए अर्थ ढूढती रचना बहुत ही भावपूर्ण है| अदृश्य को उद्बोधन और अपने प्रश्नों के जवाब विकल मांगते मन की विकलता को बहुत ही बेहतरीन ढंग से लिखा है आपने | प्रेम के लिए प्रेमासिक्त मनों ने नित नये अलंकार , बिम्ब और प्रतीक तलाश किये है |पर प्रेम अरिभाषित ही रहा है | सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें और मेरा प्यार |

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  7. प्रेमाभिव्यक्ति के माध्यम पर विमर्श के लिये आग्रह करती प्रस्तुति कई सवाल खड़े करती है। जब शब्द अपने नियत रूप में नहीं थे तब भी प्रेमाभिव्यक्ति के अनेक माध्यम थे। भूमंडलीकरण के दौर में हम साँस्कृतिक उपादानों और प्रेम के मानवीय प्रतीकों का क्षय होता हुआ देख रहे हैं।

    कविता पाठक से सीधा सम्वाद करती नज़र नहीं आ रही है बल्कि लीक से हटकर सोचने को कहती है। प्रेम पूर्णता की अनवरत तलाश है इसीलिए उसमें प्रतीक्षा जैसे मूल्य समाहित हैं।

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  8. थक से गए हैं बिम्ब
    बनके माध्यम
    अभिव्यक्ति
    प्रेम के
    पर
    मानें तो
    मुआ
    राही
    रार के
    रूह की!

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  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. तुम ही अब परिभाषित करो
    नया नाम सुझाकर
    प्रेम को उपकृत करो।
    भावपूर्ण रचना ........... सादर नमन

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  11. क्षणिक आवेश मात्र
    मुँह चिढ़ाता उपहास करता है
    पर फिर भी
    आकर्षण मन का कहाँ धुँधलाता है?

    शानदार स्वेता जी,
    प्रेम को व्यक्त करने के लिये दीवानो को नित नित शब्द रूप खोजने तो होंगे ही।

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  12. प्रेम के प्रति भारतीय चिंतन को मुखर करती और प्रेम को परिपक्व करने की सलाह देती सुन्दर रचना.

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  13. हाय ! प्रेम-पर्व पर परंपरागत प्रेमाभिव्यक्ति का ऐसा तिरस्कार? चलो प्रेमाभिव्यक्ति के हम कुछ उपमेय, उपमान सुझाते हैं -
    1. तुम एक ओवर में, युवराज सिंह के, 6 सिक्सर्स की तरह अनुपम हो.
    2. तुम हमारे बैंक खाते में मोदी जी के 15 लाख के उपहार की तरह ख़ूबसूरत हो.
    3. मैं तुम्हें उतना ही प्रेम करता हूँ जितना कि नेतागण अपने जुमलों से करते हैं.

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  14. शायद शब्दकोश सीमित है;
    प्रेम के लिये।
    अब तुम ही कोई
    नवीन विशेषण बतलाओ
    प्रेम....अपरिभाषित एहसास.... बहुत ही शानदार लाजवाब रचना.....

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  15. प्रेमाव्यक्ति के लिए प्रयुक्त
    अलंकार,उपमान,शब्द
    शायद शब्दकोश सीमित है;
    प्रेम के लिये।
    👌👌👌👍👍👍

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।