पूछती हूँ
काल के चक्रों को छू
है जन्म क्यों और
जन्म का उद्देश्य क्या?
हूँ खिलौना ईश का
तन का बदलता रुप मैं
आना-जाना पल ठिकाना
किरदार का संदेश क्या?
बनाकर के तुम मिटाते
सृष्टि का महारास रचते
शून्य,जड़-चेतन तुम्हीं से
जीवों में बचता शेष क्या?
जन्म से मरण तक
काँपती लौ श्वास रह-रह
मोह की परतों में उलझा
जीवन का असली वेश क्या?
क्यों बता न जग का फेरा
मायावी कुछ दिन का डेरा
चक्रव्यूह रचना के मालिक
है सृष्टि का उद्देश्य क्या?
©श्वेता सिन्हा
३ मार्च २०१९
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तत्वबोध की ओर ले जाती रचना अंत में प्रश्न खड़ा करती है। जीवन ख़ुद एक प्रश्न है जो संसार में अस्तित्व में आता है जिसे समझते-समझते कवि मन प्रतिसंसार भी रच लेता है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना जो अपने शब्द-विन्यास और चिंतनशील भावों से पाठक को प्रभावित करेगी।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/111.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजन्म से मरण तक
ReplyDeleteकाँपती लौ श्वास रह-रह
मोह की परतों में उलझा
जीवन का असली वेश क्या?
बहुत ही बेहतरीन रचना
बनाकर के तुम मिटाते
ReplyDeleteसृष्टि का महारास रचते
शून्य,जड़-चेतन तुम्हीं से
जीवों में बचता शेष क्या?
आप की रचना पढ़ मुझे वो गाना याद आ गया " दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई ,तूने काहे को दुनियां बनाई "बहुत -बहुत सुंदर रचना स्नेह सखी
केनौपनिषदिक परंपरा में जीवन के रहस्यों को तलाशती रचना.
ReplyDeleteक्यों बता न जग का फेरा
ReplyDeleteमायावी कुछ दिन का डेरा
चक्रव्यूह रचना के मालिक
है सृष्टि का उद्देश्य क्या?
सुंदर लेखन.....
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteक्यों बता न जग का फेरा
ReplyDeleteमायावी कुछ दिन का डेरा
चक्रव्यूह रचना के मालिक
है सृष्टि का उद्देश्य क्या?
बहुत सुंदर प्रिय श्वेता | सृष्टि के रचियता से ये प्रश्न तो बहुत ही जरूरी है | सस्नेह शुभकामनायें और मेरा प्यार |
ये जिसकी माया है वही बता सकता है या उसके प्रेम में समाहित हो कर इंसान जान सकता है ... वर्ना तो सभी खिलोने हैं उसके ... वो जैसा चाते चलता है ... बहुत उम्दा ...
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