राग-रंग बदला मौसम का
बदले धूप के तेवर
रुई धुन-धुन आसमान के
उड़ गये सभी कलेवर
सूरज की पलकें खुलते ही
लाजवंती बने पेड़ विशाल
कोयल कूके भोर-साँझ को
ताप घाम से रक्तिम गाल
पीत वसन पहने मुस्काये
झुमके झूमर अमलतास
चंदन-सी शीतल लगती
गुलमोहर की मीठी हास
टप-टप चुये अँचरा भींजे
अकुलाये दुपहरी न बीते
धूप-छाँव के खेल से व्याकुल
कुम्हलाई-सी कलियाँ खीझे
कंठ सूखते कूप,ताल के
क्षीण हुई सरिता की धारा
लहर-लहर मरुआये रोये
निष्ठुर तपन है कितना सारा
साँझ ढले सिर से अवनि के
सूरज उतरा तपन मिटाने
छुप गया सागर की लहरों में
ओढ़ चाँदनी नींद बहाने
फूल खिले नभ पर तारों के
महकी बेला अंजुरी जोड़े
सारी रात चंदा बतियाये
नींद की परियाँ पाँखें खोले
नीम निबौरी चिडिया बोली
साँस ऋतु की पल-पल गिन
चार दिवस फुर्र से उड़ जाये
चक्ख अमिया-सी गर्मी के दिन।
#श्वेता सिन्हा
शानदार रचना वाह वाह
ReplyDeleteआभारी हूँ सोलंकी जी..सादर शुक्रिया।
Deleteवाह श्वेता लाजवाब¡
ReplyDeleteग्रीष्म की तपन को सरस सरस काव्य कलिका से खिला दिया ज्यो प्यासे को नीर पिला दिया।
बहुत सुंदर वर्णन गर्मी का।
अप्रतिम ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर श्वेता ! गुलमोहर, अमलतास, फलों का राजा आम, खरबूजा, तरबूज़, फ़ालसा, ठंडाई, लस्सी, कुल्फ़ी आइसक्रीम, बच्चों की छुट्टियाँ, तारों की छाँव में सोना, क्या नियामत नहीं है इन गर्मियों में? लू, आंधी की किसे परवाह है? हमारे लिए तो गर्मी का मौसम बस, वाह ही वाह है !
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर !!
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ReplyDeleteपीत वसन पहने मुस्काये
झुमके झूमर अमलतास
चंदन-सी शीतल लगती
गुलमोहर की मीठी हास
बहुत ही लाजवाब रचना श्वेता जी ! गर्मियों का बहुत ही सुन्दर शब्दचित्रण....
वाह!!!!
कंठ सूखते कूप ताल के
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंदाज
गर्मी के दिनों और उसके आगमन के साथ प्राकृति के बदलते स्वरुप को बाखूबी शब्दों के केनवास पे उतारा है आपने ... सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteनीम निबौरी चिडिया बोली
ReplyDeleteसाँस ऋतु की पल-पल गिन
चार दिवस फुर्र से उड़ जाये
चक्ख अमिया-सी गर्मी के दिन।..... यहीं तो जीवन का संगीत है!