मैं होना चाहती हूँ
वो हवा,
जो तुम्हारी साँसों में
घुलती है
हरपल जीवन बनकर
निःशब्द!
जाड़ों की गुनगुनी धूप,
गर्मियों के भोर के
सूरज का मासूम चेहरा
वो उजाला
जो तुम्हारी
आँखों को चूमता है
हर दिन।
बादल का वो
नन्हा-सा टुकड़ा
जो स्वेद में भींजते
धूप से परेशान
तुम्हारे थकेे बदन को
ढक लेता है
बिना कुछ कहे।
बारिश की
नन्हींं-नन्हीं लड़ियाँ
जो तुम्हारे मुखड़े पर
फिसलकर
झूमती है इतराकर।
तुम्हारी छत के
मुंडेर से,
झरोखे से झाँकते
आसमान के स्याह
चुनरी पर गूँथे
सितारों की
भीड़ में गुम
एक सितारा बन
तुम्हें देखना चाहती हूँ
नींद में खोये
सारी रात
चुपचाप....
जल की स्वाति-बूँद
बनकर
कंठ में उतरकर
तुम्हारे अंतर में
विलीन होना चाहती हूँ।
तुम्हारे आँगन की माटी
जिसे तुम्हारे पाँव
कोमलता से दुलारते हैं
अनजाने ही
वो फूल जिसकी खुशबू
तुम कभी भुला नहीं पाते।
सुनो! मैं निःशब्द,मौन
समाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जमांतर।
#श्वेता सिन्हा
व्वाहहहहह
ReplyDeleteजी आभारी हूँ सर...सादर शुक्रिया।
Deleteपानी की बूँद
ReplyDeleteबनकर
कंठ में उतरकर
तुम्हारे अंतर में
विलीन होना चाहती हूँ
बेहतरीन...
आनन्दित हुई..
सादर..
आभारी हूँ दी..मन मुदित हुआ..आपकी सराहनाका आशीष मिला।
Deleteसादर शुक्रिया।
अगर साँसों की डोर कटने तक के बजाए जन्म-जन्मान्तर तक हो तो भाव और भी समर्पित हो सकती है (वैसे अगले-पिछले जन्म में विश्वास नहीं हमारा) ...बहुत संवेदनशील अनुभूति से सराबोर रचना ...अंतर्मन से अंतर्मन तक
ReplyDeleteजी आभारी हूँ.आपका सुझाव पसंद आया..और हम सुधार लिये...सादर शुक्रिया.. स्नेहाशीष बनाये रखे।
ReplyDeleteसमर्पित प्रेम की बहुत भावमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसमर्पण की गहन अनुभूतियों से भरी रचना प्रिय श्वेता | हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteप्रेम पर ,अत्यंत गहनता से भरी अनुभूतियों को अपने शब्दों में पिरोया है मैम आपने..... बहुत ही खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteसुनो! मैं निःशब्द,मौन
ReplyDeleteसमाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जन्मांतर
एक स्त्री के निष्कलुष समर्पण की अभिव्यक्ति जो कुछ चाहती नहीं बस देने में विश्वास रखती है। बधाई प्रिय श्वेता।
पानी की बूँद
ReplyDeleteबनकर
कंठ में उतरकर
तुम्हारे अंतर में
विलीन होना चाहती हूँ
बहुत खूब ...
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-04-2019) को "रिश्तों की चाय" (चर्चा अंक-3311) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुनो! मैं निःशब्द,मौन
ReplyDeleteपढ़ना चाहती हूँ
तुम्हारे रचित संग्रह
प्रकृति के
हर कण को अपने अहसास के साथ गूंथ देती हो।
बहुत बहुत सुंदर ।
बहुत खूबसूरत अहसासों के साथ सजी रचना है,श्वेता जी।
ReplyDeleteबेहतरीन।
वा व्व श्वेता दी,समर्पण की अद्भुत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुनो! मैं निःशब्द,मौन
ReplyDeleteसमाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जमांतर।
दार्शनिक अंदाज की बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीया श्वेता जी।
वाह!!!बहुत ही लाजवाब....
ReplyDeleteबस लाजवाब...
सुनो! मैं निःशब्द,मौन
समाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जमांतर।
वाहवाह....
सुंदर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/118.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुनो! मैं निःशब्द,मौन
ReplyDeleteसमाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जमांतर.... वाह! अंतस के अनुराग का अनहद नाद।
बहुत सुन्दर
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