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Wednesday, 15 May 2019

गुलमोहर


तपती गर्मी में आकुल,व्यथित मानव मन और आँखों को शीतलता प्रदान करता गुलमोहर 
प्रकृति का अनुपम उपहार है। सूखी कठोर धरती पर अपनी लंबी शाखाओं ,मजबूतत बाहें  फैलाये  साथ नाममात्र की पत्तियों और असंख्य चटकीले रक्तिम फूलों के साथ मुस्कुराता है गुलमोहर,इसे  संस्कृत में "राज-आभरण" कहते है जिसका अर्थ राजसी आभूषणों से सजा हुआ। इन फूलों से भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के मुकुट का श्रृंगार भी किया जाता है इसलिए इसे 'कृष्ण चूड' भी कहते हैं। गुलमोहर मकरंद के अच्छे स्रोत होते हैं।
मार्च से लेकर जुलाई तक अपने तन पर लाल,पीले नारंगी मिश्रित रंग के फूलों की मख़मली चादर लपेटे  
गुलमोहर हमें सकारात्मक संदेश दे जाता है कि चाहे जीवन में परिस्थितियाँ तपती गर्मियों की तरह चुभन वाली हो पर हमें अपने मन के गुलमोहर रुपी धैर्य और जुझारूपन के पुष्प से सुशोभित रहना चाहिए तभी हम स्वयं को और दूसरों को खुश रख पायेंगे


गुलमोहर
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बसंत झरकर पीपल से 
जब राहों में बिछ जाता है
दूब के होंठ जलने लग जाते
तब गुलमोहर मुस्काता है

कली ,फूल,भँवरें की बात
मधुमास की सिहरी रात
बन याद बहुत तड़पाता है
तब गुलमोहर मुस्काता है

धूप संटियाँ मारे गुस्से से
स्वेद हाँफता छाँव को तरसे
दिन अजगर-सा अलसाता है
तब गुलमोहर मुस्काता है

लू के थप्पड़ से व्याकुल हो
कूप,सरित,ताल आकुल हो
तट ज्वर से तपता कराहता है
तब गुलमोहर मुस्काता है

निशा के प्रथम पहर में नभ
तारों की चुनर ओढ़ शरमाये
चंदा का यौवन इठलाता है
तब गुलमोहर मुस्काता है

बिन देखे बस बातें सुनकर ही
दिल भावों से भर जाता है
जब कंटक में चटखे कलियाँ
तब गुलमोहर मुस्काता है

  #श्वेता सिन्हा

16 comments:

  1. लाजवाब
    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति

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  2. प्रेरणादायी कविता और कुछ नए और सुन्दर शब्द...वाह दी

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  3. वाह बहुत सुन्दर रस प्रवाह।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    वाह्ह्ह श्वेता अनुपम ।

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  4. वाह श्वेता जी...., जीने की सीख और वह भी गलमोहर के साथ ...मार्च से जुलाई ...गर्मी की कठोरता और गुलमोहर का मृदु हास...अप्रतिम सृजन ।

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  5. "बिन देखे बस बातें सुनकर ही
    दिल भावों से भर जाता है"
    जब कंटक में चटखे कलियाँ
    तब गुलमोहर मुस्काता है
    गुलमोहर के साथ बिम्बों का सुन्दर गढ़न ... मन से मन की बात मन तक ...

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  6. वाह
    गुलमोहर का सुंदर रसमय चित्रण
    👌👌

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  7. बहुत सुंदर रचना 👌

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  8. सुन्दर!
    धरती तपती तप्त तवा से
    तब गलबहियां संग हवा के
    पीले-पीले लाल फूलों के
    चुनर से सहला जाता है

    गुलमोहर तब मुस्काता है!!!!


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  9. निशा के प्रथम पहर में नभ
    तारों की चुनर ओढ़ शरमाये
    चंदा का यौवन इठलाता है
    तब गुलमोहर मुस्काता है
    बहुत ही लाजवाब भाव... खूबसूरत बिम्ब...
    वाह!!!

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  10. अप्रतिम सृजन 👌👌👌

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  11. वाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ।

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  12. बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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  13. बहुत सुंदर कविता।

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  14. और जब ताप सहन न होने पर इसकी छाँव में यात्री सुस्ताता है तो गुलमोहर मुस्काता है ।
    बहुत प्यारी रचना ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।