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Sunday, 29 September 2019

मौन सुर

वे नहीं जानते हैं
सुर-ताल-सरगम के
ध्वनि तरंगों को
किसी को बोलते देख
अपने कंठ में अटके
अदृश्य जाल को
तोड़ने की बस 
निरर्थक चेष्टा करते 
अपनी आँखों में
समेटकर सारा अर्थ 
अव्यक्त ही रख लेते
मन के अधिकतम भावों को
व्यक्त करने की
अकुलाहट में ...

जग के कोलाहल से विलग
है उनकी अपनी एक दुनिया 
मौन की अभेद्य परतों में 
अबोले शब्दों के गूढ़ भाव
अक़्सर चाहकर भी 
संप्रेषित कर नहीं पाते
मूक-बधिर ... बस 
देखकर,सूँघकर, स्पर्श कर
महसूस करते हैं जीवन-स्पन्दन
मानव मन के शब्दों वाले
विचारों के विविध रुपों से
सदा अनभिज्ञ ...बस 
पढ़ पाते हैं आँखों में
प्रेम-दया-करुणा-पीड़ा
मान-अपमान की भाषा,
ये मासूम होते हैं सृष्टि के
अमूल्य उपहारों की तरह विशिष्ट,
मौन को मानकर जीवन

बिना किसी भेद के
मिलते है गले
लुटाते हैं प्रेम
आजीवन भीतर ही भीतर
स्पंदित श्वास 
निःशब्द महसूस करते
स्पर्श के लय में और 
धड़कनों की सुर-ताल में
समस्त संसार को।

#श्वेता सिन्हा

15 comments:

  1. Replies
    1. आभारी हूँ दी सादर शुक्रिया।

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  2. अपनी आँखों में
    समेटकर सारा अर्थ
    अव्यक्त ही रख लेते
    मन के अधिकतम भावों को
    व्यक्त करने की
    अकुलाहट में ...
    एक मौन जीवन-स्पन्दन के अकुलाहट का अहसास कराती हुई रचना ... नमन इस अकुलाहट के सुर को हृदय तक स्पर्श कराने के लिए ...

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    1. जी आभारी हूँ..मन से बहुत शुक्रिया आपका।
      रचना के भावों को महसूस किया आपने लेखनी सार्थक हुई।

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  3. मन को छूती अभिव्यक्ति

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  4. 'गिरा, अनयन, नयन, बिनु बानी'
    जिसको वाणी का वरदान नहीं मिला है, वह आँखों की भाषा से सब कुछ कह लेता है. बस, हमको उसके भाव समझने की संवेदनशीलता होनी चाहिए.

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  5. वाह !अपनी आँखों में समेटकर सारा दर्द अव्यक्त ही रख लेते। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  6. मौन की अभेद्य परतों में
    अबोले शब्दों के गूढ़ भाव
    अक़्सर चाहकर भी
    संप्रेषित कर नहीं पाते
    मूक-बधिर ... बस
    देखकर,सूँघकर, स्पर्श कर
    महसूस करते हैं जीवन-स्पन्दन
    मूक की व्यथा की वाणी और बधिर की श्रवण शक्ति जैसी संवेदनशीलता लिए मर्म को छूती हृदयस्पर्शी रचना प्रिय श्वेता👌👌

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  7. प्रिय श्वेता , मूकबधिर अपने आप में खोये वो प्राणी हैं , जिन्हें संसार के छल कपट नहीं आते । सृष्टि में विधाता नें इन्हे सुकोमल , निर्मल मन दिया है , जिससे वे विशिष्टतम लोगों की श्रेणि में आते हैं। संवेदनाओं को जगाती मार्मिक रचना के लिए मेरी शुभकामनायें ।

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01-10-2019) को     "तपे पीड़ा  के पाँव"   (चर्चा अंक- 3475)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. मौन की अभेद परत और उस के बाद भी प्रेम के भाव को समझा सकें तो आलोकिक हो जाता है यह एहसास ...
    सुन्दरता से बुने भाव ... बहुत लाजवाब ...

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  10. संवेदनाओं से भरी हृदय स्पर्शी कृति," मूक और बधिर "उनके मन के असमर्थ भावों को सुंदर शब्द दिए आपने श्वेता ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    अनुपम।
    अनछुवा विषय ।

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  11. मूकबधिर बच्चों के साथ मेरा अक्सर मिलना जुलना रहता है।
    अंध विद्यालय (श्री गंगानगर) में मेरा आना जाना है। सो आपकी ये कविता मन के बेहद करीब हो गयी। कुछ भाव मेरे भी हैं पर मैं लिख नहीं सकता।
    आपके आसपास 45-45 बच्चों की क्लास होती है फिर शांति किसी सुनसान जगह सी होती है।
    यही शांति आपको एकाग्रता की बजाए इधर उधर भगाती है जैसे कातिल।
    बेहद हृदयस्पर्शी रचना।

    पधारे शून्य पार 

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  12. वाह!श्वेता ,बहुत खूब!मूक ,बधिर लोगों के मन की भावनाओं को कितनी खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने ।

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  13. मूक बधिर होना एक तपस्या है जिसके फल स्वरूप नारायण इन्हें हर कलुषित भावों से मुक्त रखते हुए जीवन की सुंदर समझ देते हैं। कभी कभी लगता है कि काश ये संसार भी मूक बधिर होता तो ना कुछ बुरा बोलता ना सुनता और शायद तब एक दूसरे के भावों और पीड़ा को समझ पाता।

    आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर सृजन,भावपूर्ण,अनुपम 👌
    जहाँ एक ओर मूक बधिरों के भाव,उनकी अकुलाहट मन को छू रही वही दूसरी ओर आपकी पंक्तियाँ मानवता के नाम एक संदेश लिए बैठी है।
    हृदयस्पर्शी रचना,कोटिशः नमन आपकी कलम को सादर नमन 🙏

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।