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Thursday, 24 October 2019

सफ़र जीवन का....


सफ़र जीवन का यूँ अनवरत चलता रहा
अंधेरों में मन के विश्वास दीप जलता रहा

जख़्म छूकर पूछ बैठे चोट ये कैसे लगी?
दर्द मन का बूँद बनकर आँख से गलता रहा

राह की वीरानियाँ टोक देती पाँवों को
दो क़दम बस और कहकर बैठना टलता रहा

कह रही गवाहियाँ मंजिलें उसको मिली 
चाँद-सूरज की तरह जो डूबकर उगता रहा 

हार करके बैठना मत आँधियाँ पलभर की हैं
जीत उसकी ही हुई जो डग सदा भरता रहा

द्वेष मिटाता रहा मनुष्य और मनुष्यता
सृष्टि का हर एक कण बस प्रेम में पलता रहा

#श्वेता सिन्हा

15 comments:

  1. बहुत उम्दा अशआर
    बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  2. वाह बहुत सुंदर संकलन

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  3. वाह बेहतरीन रचना सखी

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  4. वाह बेहतरीन 👌👌👌👌

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  5. वाह बहुत ही शानदार सृजन ....

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  6. राह की वीरानियाँ टोक देती पाँवों को
    दो क़दम बस और कहकर बैठना टलता रहा
    ...वाह। बहुत खूबसूरत अशआर।

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  7. वाह वाह बहुत सुंदर आदरणीया दीदी जी

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  8. बहुत सुन्दर श्वेता ! बुझते हुए मन के दीपक को तुमने आशारूपी घृत से फिर भर दिया.

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  9. वाह!!श्वेता!!बहुत सुंदर सृजन । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  10. सुन्दर प्रस्तुति

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  11. वाह वाह. अद्भुत 👌 👌 👌

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  12. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सार्थक...
    लाजवाब सृजन

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।