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Wednesday, 11 December 2019

मोह-भंग


भोर का ललछौंहा सूरज,
हवाओं की शरारत,
दूबों,पत्तों पर ठहरी ओस,
चिड़ियों की  किलकारी,
फूल-कली,तितली
भँवरे जंगल के चटकीले रंग;
धवल शिखरों की तमतमाहट
बादल,बारिश,धूप की गुनगुनाहट
झरनो,नदियों की खनखनाहट
समुंदर,रेत के मैदानों की बुदबुदाहट
प्रकृति के निःशब्द,निर्मल,निष्कलुष
 कैनवास पर उकेरे
 सम्मोहक चित्रों से विरक्त,
निर्विकार,तटस्थ,
अंतर्मन अंतर्मुखी द्वंद्व में उलझा,
विचारों की अस्थिरता
अस्पष्ट दोलित दृश्यात्मकता
कल्पनाओं की सूखती धाराओं
गंधहीन,मरुआते
कल्पतरुओं की टहनियों से झरे
बिखरे पत्रों को कुचलकर
यथार्थ के पाँव तले,
आदिम मानव बस्तियों में प्रवेश
जीवन के नग्न सत्य से
साक्षात्कार,
 दहकते अंगारों पर
 रखते ही पाँव
 भभक उठती है चेतना,
 चिरैंधा गंध से भरी साँसे
 तिलिस्म टूटते ही
 व्याकुलता से छटपटाने लगती है,
भावहीन, संवेदनहीन
निर्दयी,बर्बर प्रस्तर प्रहार
शब्दाघात के आघात
असहनीय वेदना से
तड़पकर मर जाती है 
प्रकृति की कविताएँ,
भावों की स्निग्धता 
बलुआही होने का एहसास,
निस्तेज सूर्य की रश्मियाँ
अस्ताचल में पसरी
नीरवता में चिर-शांति टोहता, 
जीवन की सुंदरता से मोह-भंग 
होते ही मर जाता है 
एक कवि।

#श्वेता

24 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3547 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. बेहद आभारी हूँ सर सादर शुक्रिया।

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  2. केवल एक शब्द - अद्भुत!!!!
    अंतिम पंक्ति......

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    1. बहुत आभारी हूँ भाई सस्नेह शुक्रिया।

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  3. वाह ! बहुत ही सुन्दर ! अनुपम अभिव्यक्ति !

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    1. जी दीदी आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई। सादर शुक्रिया।

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 दिसम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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    1. आभारी हूँ दी आपकी प्रस्तुति में मुझे स्थान मिलना मेरा सौभाग्य है।
      सादर शुक्रिया दी।

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  5. अद्भुत "दी शब्द नहीं होते हैं आपकी कविताओं के लिए साहित्य सागर में गोते लगाकर आ जाती हूं, बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने यह भी...!!👌👌👌

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    1. आपका स्नेह है अनु प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया। सस्नेह।

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  6. श्वेता दी, बहुत ही सुंदर रचना। जीवन की सुंदरता से मोह-भंग होते ही मर जाता है एक कवि। बिल्कुल सटिक विश्लेषण।

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    1. आभारी हूँ ज्योति दीदी सादर शुक्रिया।

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  7. अनोखी सी, शब्दों से तिलिस्म पैदा करती अनुपम काव्य रचना ।
    गूंथन बहुत शानदार, भाव विहल से परिलक्षित होते ।
    वैसे मेरा मानना है कविता कभी नहीं मरती चाहे प्रकृति की हो चाहे यथार्थ पर वो सदा कवि की संवेदना में जीवित रहती है,और कवि जिंदा रहता है अपनी कविता में ।

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    1. Kusum Kothari जी दी आप का कथन सत्य है मेरा मंतव्य है कि जब हृदय की कोमलता पर किसी भी संदर्भ में हुये परिवर्तन के फलस्वरूप कठोरता का आघात होता है उससे आहत होकर एक कवि मन की स्वाभाविक अभिव्यक्ति सूख जाती है और प्राकृतिक सरसता,भावुकता लयता,तारतम्यता दम तोड़ देती है।
      रह जाती है पथरीली,कंकरीली शाब्दिक ढेर।
      सादर आभार दी आपके विश्लेषण ने मुझे कविता का अर्थ स्पष्ट करने का अवसर प्रदान किया।

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  8. जीवन के नग्न सत्य से
    साक्षात्कार,
    दहकते अंगारों पर
    रखते ही पाँव
    भभक उठती है चेतना,
    वाह!!!!
    सटीक.....
    जीवन की सुंदरता से मोह-भंग
    होते ही मर जाता है
    एक कवि।
    बहुत ही लाजवाब उत्कृष्ट सृजन

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    1. आभारी हूँ सुधा जी सादर शुक्रिया।

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  9. आभारी हूँ अनु बेहद शुक्रिया सस्नेह।

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  10. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति

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    1. जी आभारी हूँ सादर शुक्रिया।

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  11. कवी का जन्म लेना फिर उसकी मौत हो जाना ...
    इस सफ़र को बहुत ही लाजवाब तिलिस्मी शब्दों से गुज़रती हुयी कवी की संवेदना ...
    लाजवाब रचना है ...

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    1. जी आभारी हूँ सर...सादर शुक्रिया।

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  12. प्रिय श्वेता , शब्दाघात से आहत किसी कवि का प्रकृति , प्रेम आदि सरस विषयों से विमुख होकर शून्यता से भर जाना साहित्य का दुर्भाग्य है | पर गहन वेदना से अनगिन कवि उपजे हैं और उनकी भावों से भरी रचनाओं ने अमरत्व पाया है |असल में दर्द और पीड़ा से भरे गीत साहित्य की अनमोल थाती रहे हैं | गोस्वामी तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली ने यदि उनके अंधप्रेम के लिए उन्हें ना लताड़ा होता तो शायद साहित्य रामचरितमानस जैसे अमर ग्रन्थ से वंचित रह जाता | पंजाबी के कवी शिवकुमार बटालवी ने जीवन भर पीड़ा को भोगा और ऐसा लिखा जो सदियों तक फीका नहीं पड़ेगा | सार्थक रचना के लिए मेरी शुभकामनायें और बधाई | सस्नेह |

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    1. जी प्रणाम दी।
      आपका कथन सर्वदा सत्य है परंतु दी मेरा अभिप्राय मात्र इतना है कि कवि की आत्मा उसकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति होती है और जब किसी आघात से कवि हृदय विरक्त होता है तो आत्मा की सुगंध खो जाती है।
      और दी हर कोई तुलसीदास या कवि बटालवी तो नहीं बन सकता न...।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियाओं की सदैव प्रतीक्षा रहती है। सादर आभार दी शुक्रिया।

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  13. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।