मैं होना चाहती हूँ
वो हवा,
जो तुम्हारी साँसों में
घुलती है
हरपल जीवन बनकर
निःशब्द!
जाड़ों की गुनगुनी धूप,
गर्मियों के भोर के
सूरज का मासूम चेहरा
वो उजाला
जो तुम्हारी
आँखों को चूमता है
हर दिन।
बादल का वो
नन्हा-सा टुकड़ा
जो स्वेद में भींजते
धूप से परेशान
तुम्हारे थकेे बदन को
ढक लेता है
बिना कुछ कहे।
बारिश की
नन्हींं-नन्हीं लड़ियाँ
जो तुम्हारे मुखड़े पर
फिसलकर
झूमती है इतराकर।
तुम्हारी छत के
मुंडेर से,
झरोखे से झाँकते
आसमान के स्याह
चुनरी पर गूँथे
सितारों की
भीड़ में गुम
एक सितारा बन
तुम्हें देखना चाहती हूँ
नींद में खोये
सारी रात
चुपचाप....
जल की स्वाति-बूँद
बनकर
कंठ में उतरकर
तुम्हारे अंतर में
विलीन होना चाहती हूँ।
तुम्हारे आँगन की माटी
जिसे तुम्हारे पाँव
कोमलता से दुलारते हैं
अनजाने ही
वो फूल जिसकी खुशबू
तुम कभी भुला नहीं पाते।
सुनो! मैं निःशब्द,मौन
समाना चाहती हूँ
तुम्हारे जीवन में
प्रकृति के
हर उस कण की तरह
जो मौजूद है साथ तुम्हारे
शाश्वत
जन्म-जमांतर।
#श्वेता सिन्हा