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Sunday, 5 January 2020

हम नहीं शर्मिंदा हैं


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हम हिंदु मुसलमान में ज़िंदा हैं
हिंदुस्तान के मज़हबी बाशिंदा हैं
लाशों पर हाय! हृदयहीन राजनीति
 कौन सुने मज़लूमों की आपबीती?
वाक् वीर करते औपचारिक निंदा है
पर,ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं!

गोरखपुर,कोटा,लखनऊ या दिल्ली
खेल सियासती रोज उड़ाते खिल्ली
मक़्तल पर महत्वकांक्षा की चढ़ते
दाँव-पेंच के दावानल में जल मरते
चतुर बहेलिये फाँसते मासूम परिंदा है
पर ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं! 

 लगाकर नाखून पर  नीला निशान
गर्वित हो सेल्फी खींच,दिखाते शान
ओछे,घटिया जन-प्रतिनिधि चुनते
रीढ़विहीन धागों से भविष्य बुनते
समरसता पी जाता क्रूर दरिंदा है
पर ज़रा भी ,हम नहीं शर्मिंदा हैं !

आज उनकी, कल हमारी बारी होगी
बचोगे कैसे जब तलवार दोधारी होगी?
मौत महज समाचार नहीं हो सकती
ढ़ोग मानवता की बहंगी नहीं ढो सकती
लाचारों को नोंचता स्वार्थी कारिंदा है
पर, ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं!

लचर व्यवस्थाओं की ढेर पर बैठ
जाने हम किसे लगाते रहते हैं टेर
अपना सामर्थ्य सौंपकर निश्चिंत
इतिश्री कर्तव्य नहीं होते कदाचित्
चुप हैं सच जानकर कि वे रिंदा है
पर,ज़रा भी,हम नहीं शर्मिंदा हैं!

#श्वेता सिन्हा
५/१/२०२०

34 comments:

  1. बहुत जबरदस्त
    लाजवाब

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    1. बहुत आभार..शुक्रिया लोकेश जी।
      सादर।

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  2. सटीक प्रस्तुति

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    1. बहुत आभार..शुक्रिया रितु जी।
      सादर।

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  3. वाक़ई हम शर्मिंदा हैं,
    रोज़ाना सौ ज़ुल्म सहे,
    पर देखो, फिर भी ज़िन्दा हैं.

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    1. जी सर सच कहा आपने।
      आभार आपका सर।
      सादर शुक्रिया।

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  4. एक ताकत नजर आ रही है आपकी कविताओं में श्वेता दी... जरूरत है हमें इस तरह की ओज से भरी हुई कविताओं की... तब शायद हमारी शर्मिंदगी कुछ कम होगी बहुत ही शानदार कविता बधाई आपको

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    1. तुम्हारा स्नेह है अनु।
      मन जब भावों से भर आता है तो कुछ न कुछ फूट पड़ना स्वाभाविक है।
      सस्नेह शुक्रिया।

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  5. श्रेष्ठ रचना।बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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    1. आभारी हूँ दीदी।
      सादर।

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  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 05 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      आपका.स्नेह मिलता रहे।
      सादर शुक्रिया।

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  7. वाह!!श्वेता ,बहुत ही शानदार सृजन ..!!

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    1. आभारी हूँ शुभा दी बहुत शुक्रिया।
      सादर।

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  8. Replies
    1. आभारी हूँ सर बहुत शुक्रिया।
      सादर।

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  9. लगाकर नाखून पर नीला निशान
    गर्वित हो सेल्फी खींच,दिखाते शान
    ओछे,घटिया जन-प्रतिनिधि चुनते
    रीढ़विहीन धागों से भविष्य बुनते
    वाह!!!!
    मन को झकझोरने वाला बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...

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    1. आभारी हूँ सुधा जी..शुक्रिया आपका।
      सादर।

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  10. विचारणीय रहना ...
    काश देश में रहने वाला हर नागरिक जागरूक हो ... अपने मन का सभी प्रयोग कर सके ...
    बहुत प्रभावी रचना है ...

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    1. जी आभारी हूँ.सर।
      बहुत शुक्रिया।
      सादर।

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  11. वर्तमान समय की नब्ज टटोलती प्रभावी रचना
    बधाई

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    1. जी आभारी हूँ सर।
      बहुत शुक्रिया सादर।

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  12. सम्पूर्ण रचना/विचार मानो एक घायल तन-मन अपनी संवेदनाओं के लहू में तरबतर लाचार ज़मीन पर तड़पता-छटपटाता
    निकलते प्राण में भी जाते-जाते जमीन की मिट्टी को नाखून से बकोट रहा हो .. सम्पूर्ण बेहतरीन मन को तार-तार करती रचना में भी विशेष चुभती पंक्तियाँ ...

    "लगाकर नाखून पर नीला निशान
    गर्वित हो सेल्फी खींच,दिखाते शान"

    "रीढ़विहीन धागों से भविष्य बुनते"

    "मौत महज समाचार नहीं हो सकती
    ढोंग मानवता की बहंगी नहीं ढो सकती"

    "चुप हैं सच जानकर कि वे रिंदा है" ... साधुवाद ऐसे विचार के लिए ...

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    1. विस्तृत समीक्षात्मक बहुमूल्य प्रतिक्रिया आपकी।
      भावों के समर्थन से संबल मिला।
      जी..बहुत बहुत आभारी हूँ..शुक्रिया आपका।
      सादर।

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  13. Replies
    1. बहुत आभारी हूँ संजय जी।
      सादर..शुक्रिया।

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  14. बहुत सार्थक सृजन व्यग्य में ही सही सटीक खाका खिंचा है आपने,लचर व्यवस्थाआओं पर जबरदस्त प्रहार करती चिंतन परक रचना।

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    1. जी दी बहुत-बहुत आभारी हूँ।
      सादर शुक्रिया।
      आपका स्नेह मिलता रहे।

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  15. आभारी हूँ रवींद्र जी।
    सादर शुक्रिया।

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  16. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 28 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  17. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति 👌

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  18. बहुत देर से पढ़ी आपकी ये रचना। हतप्रभ हूँ, कैसे छूट गई ? इसे पढ़कर कलम की ताकत का अहसास हो रहा है।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।