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Thursday, 16 April 2020

सच


किसी सिक्के की तरह
सच के भी दो पहलू 
होते हैं...!

आँखों देखी सच का
अनदेखा भाग 
समझ के अनुसार
सच होता है।

सच जानने की
उत्कंठा में
राह की भूलभूलैया में
भटकते हुये थककर
खो जाते हैं अक़्सर
अन्वेषण
सच की 
भ्रामक परछाईंयों में।

सच ठहरा होता है,
अविचल,अभेद्य
मूक-बधिर सच
निर्विकार,निश्चेष्ट
देखता-सुनता रहता है
विरूदावली
आह्वान और प्रलाप।

सच के स्थिर,सौम्य
दैदीप्यमान प्रकाश के 
पीछे का सच
उजागर करने के लिए
किये गये यत्न में
अस्थिर किरणों के
प्रतिबिंब में
खंडित सच
बरगलाता है।

सच का 
एक से दूसरे तक
पहुँचने के मध्य
दूरी चाहे शून्य भी हो तो
परिवर्तित हो जाता है 
वास्तविक स्वरूप।

सच शिला की भाँति
दृढ़प्रतिज्ञ,अडिग
मौन दर्शक होता है 
तथाकथित
सच के वाहक
करते हैं गतिमान सच 
अपने मनमुताबिक
सच के प्रवक्ता
सच के नाम पर
जितना मोहक
मायाजाल बुन पाते हैं
सच के सच्चे योद्धा
सर्वश्रेष्ठ सेनानी का 
तमगा पाते हैं।

©श्वेता सिन्हा
१६अप्रैल२०२०
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15 comments:

  1. सच के सच्चे योद्धा
    सर्वश्रेष्ठ सेनानी का
    तमगा पाते हैं।

    सच्चाई

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  2. सच किसी तमगे का मोहताज नहीं होता ... शायद ☺ ( पर एक जमीनी हक़ीक़त यह भी है कि हमारे न्यायालयों में कई जीते गए झूठे मुक़दमे "सत्यमेव जयते" की तख़्ती को मुँह चिढ़ाते हुए गर्दन अकड़ा कर बाहर निकल जाते हैं और सच जेल में ... शायद ..)

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सच ठहरा होता है,
    अविचल,अभेद्य
    मूक-बधिर सच
    निर्विकार,निश्चेष्ट
    देखता-सुनता रहता है
    विरूदावली
    आह्वान और प्रलाप।
    ... सच का मान, जीवन का अभिमान
    मुश्किलें कितनी भी हों राह में
    जीवन है गतिमान !!
    बेजोड़ सृजन अनुजा 👌👌

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  5. सच के प्रवक्ता
    सच के नाम पर
    जितना मोहक
    मायाजाल बुन पाते हैं

    और यही मायाजाल
    बस सच है।

    सुन्दर।

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  6. सच का
    एक से दूसरे तक
    पहुँचने के मध्य
    दूरी चाहे शून्य भी हो तो
    परिवर्तित हो जाता है
    वास्तविक स्वरूप।
    एकदम सटीक....अपना परिवर्तित रूप देखकर भी सच खामोश रहता है
    सच शिला की भाँति
    दृढ़प्रतिज्ञ,अडिग
    मौन दर्शक होता है
    आखिर क्यों...???
    वाह!!!
    कमाल का सृजन
    लाजवाब... बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

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  7. वाह!!
    सच के और सत्य के मध्य कितने पर्दे हैं ।
    सुंदर गहन चिंतन, अविरल प्रवाह लिए सार्थक सृजन।

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  8. सच के प्रवक्ता
    सच के नाम पर
    जितना मोहक
    मायाजाल बुन पाते हैं
    सच के सच्चे योद्धा
    सर्वश्रेष्ठ सेनानी का
    तमगा पाते हैं।
    बहुत सुंदर रचना, श्वेता दी।

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  9. सच के कितने पहलू और जो भी हो सच तो सच ही होता है ... उसका पहलू भी एक .... हाँ उसे देखने का नजरिया जुदा हो सकता है ...

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  10. प्रिय श्वेता , सच का अन्वेषण ही क्यों किया जाता है समझ नहीं आता | इस अन्वेषण में कई भ्रम इसे आच्छादित कर इसके मूल स्वरूप को नष्ट कर देते हैं | सार्थक रचना , जो भली भांति सच पक्ष रखने में सक्षम है | सस्नेह हार्दिक शुभकामनाएं |

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  11. सच शिला की भाँति
    दृढ़प्रतिज्ञ,अडिग
    मौन दर्शक होता है...गहन चिन्तन की सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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  12. सच तो सच होता है उसके पहलुओं को देखने-समझने के लिए समग्र दृष्टि की नितांत आवश्यकता होती है। यह तो हमारी क्षमता पर निर्भर होता है कि हम सच को कितना समझ और स्वीकार पाते हैं व उसे जानने की उत्कंठा रखते हैं। वैसे सच ऐसा मूल्य है जिसके प्रति सबकी लालसा जुड़ी होती है,सभी सच का अस्तित्त्व स्थापित करना चाहते हैं। सच का महत्त्व मिथ्या की महिमा और अत्याचार से निस्संदेह बढ़ जाता है। सच तो जहां है वहीं रहता है कदाचित हम भ्रमित हो सकते हैं। सच जानने की तीव्र इच्छा जीवन में रौशनी के नये कपाट खोलती है और दृष्टि विहंगम होती जाती है।

    गूढ़ार्थों में उलझाती यह रचना हर बार पढ़ने पर नये अर्थ उभारती है।

    बधाई एवं शभकामनाएँ।

    लिखते रहिए।

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  13. सच का
    एक से दूसरे तक
    पहुँचने के मध्य
    दूरी चाहे शून्य भी हो तो
    परिवर्तित हो जाता है
    वास्तविक स्वरूप
    अति उत्तम ,सुंदर रचना ,

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  14. सच का सच रूप।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।