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Saturday, 18 April 2020

तमाशा


 भूख के नाम पर,
हर दिन तमाशा देखिये।

पेट की लकीरों का
चीथड़ी तकदीरों का,
दानवीरों की तहरीरों में
शब्दों का शनाशा देखिये।

उनके दर्द औ' अश्क़ पर
दरियादिली के मुश्क पर,
चमकते कैमरों के सामने
बातों का बताशा देखिये।

सपनों भरा पतीला लेकर
घोषणाओं का ख़लीता देकर,
ख़बरों में ख़बर होने की
होड़ बेतहाशा देखिये।

बिकते तैल चित्र अनमोल
उधड़े बदन,हड्डियों को तोल,
जीवित राष्ट्रीय प्रदर्शनी में 
चिरपरिचित निराशा देखिये।

मेंढकों की आज़माइश है
दयालुता बनी नुमाइश है, 
सिसकियों के इश्तिहार से,
बन रहे हैं पाशा देखिये।

 भूख के नाम पर,
हर दिन तमाशा देखिये।

©श्वेता सिन्हा
१८अप्रैल२०२०

शब्दार्थ:
-------
शनाशा- जान-परिचय
मुश्क  - बाँह,भुजा
ख़लीता- थैला
पाशा - तुर्किस्तान में बड़े बड़े अधिकारियों और सरदारों को दी जानेवाली उपाधि।



12 comments:

  1. देख रहे हैं। सुन्दर सृजन।

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  2. भूख के नाम पर,
    हर दिन तमाशा देखिये।
    बिल्कुल सत्य और सटीक 👌

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  3. बातों का बताशा... बधाई!

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  4. बहुत खूब... शब्दों का बेजोड़ संयोजन 👌👌👌

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  5. वाह!श्वेता ,भूख के नाम पर हर दिन तमाशा ,वाह !!बहुत खूब!

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  6. वाह अप्रतीम रचना श्वेता! सच्चाई से परिपूर्ण।

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  7. मार्मिक और सार्थक अभिव्यक्ति

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  8. उनके दर्द औ' अश्क़ पर
    दरियादिली के मुश्क पर,
    चमकते कैमरों के सामने
    बातों का बताशा देखिये।
    बहुत खूब प्रिय श्वेता। समाज सेवा के कथित ठेकेदारों को आइना दिखाती बहुत सार्थक रचना , जो बडी सहजता से पाखण्डी मानवतावादियो से संवाद कर उन्हें उनकी हकीकत से रुबरु कराती है। सुंदर , सर्व रचना के लिए शुभकामनायें और बधाई👌👌👌💐💐💐💐

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  9. कितना कुछ भी घटित हो जाय लेकिन दिखावा फिर भी भारी है, ये भी एक तरह की बहुत बड़ी महामारी है
    बहुत सही लिखा है आपने

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  10. गहरी ...
    यहाँ तो हर बात पर रोज़ तमाशा हो जाता है ...
    दिखावा करना एक आदत है जिसका स्वाद इंसान नहीं छोड़ पाता ...

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  11. खोखली हमदर्दी पर तीखा व्यंग्य करती प्रासंगिक रचना। मौजूदा माहौल में स्वार्थ और बेशर्मी समाज को मूल्यविहीन जीवन की ओर अग्रसर कर रही है जहाँ भौतिकता एवं पदार्थवाद का बोलबाला है।

    यथार्थपरक सटीक चिंतन को उभारती अभिव्यक्ति जो पीड़ित पक्ष के लिए मरहम जैसी है।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।