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Monday, 18 May 2020

साँझ


पेड़ की फुनगी में
दिनभर लुका-छिपी 
खेलकर थका,
डालियों से
हौले से फिसलकर
तने की गोद में
लेटते ही
सो जाता है,
उनींदा,अलसाया 
सूरज।

पीपल की 
पत्तियाँ फटकती हैं
दिनभर धूप,
साँझ को समेटकर 
रख देती है,
तने की आड़ में
औंधा।

दिनभर
फुदकती है
चिरैय्या
गुलाबी किरणें 
चोंच में दबाये
साँझ की आहट पा
छिपा देती हैं,
अपने घोंसलों में,
तिनकों के
रहस्यमयी
संसार में।

#श्वेता सिन्हा
१८मार्च२०२०

25 comments:

  1. Replies
    1. त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ सर।
      सादर।

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  2. सुंदर सुंदर बिंबो से सजी खूबसूरत रचना श्वेता...बहुत बढ़िया ������

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    1. बहुत आभार दी
      सस्नेह शुक्रिया।
      सादर।

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  3. प्राकृतिक दृश्यों को लेकर आप हमेशा खूबसूरत रचनाएं रचती हैं लेकिन जब आप सामाजिक विषयों पर लिखती तब आप की छवि एक बेहद सशक्त कवित्री की नजर आती है कई दिनों से आपकी समसामयिक घटनाओं पर कविताएं पढ़ रही थी लेकिन आज अचानक से आप ने पेड़ की फुनगी पर चांद को चढ़ा दिया तो.मन फिर से मनोरम दृश्यों पर उलझ गया..लिखती रहिये ..आप बहुत अच्छा लिखती है

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    1. इसके पहले वाली रचना पढ़ो अन्नू..वो सामयिक है। मन जब ज्यादा उद्विग्न हो तो प्रकृति ही शांति प्रदान करती है। प्रकृति मेरी आत्मा है।
      तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा।
      बहुत आभार।
      सस्नेह शुक्रिया।

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  4. वाह!श्वेता ,अति सुंदर !!

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सस्नेह शुक्रिया।
      सादर।

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  5. वाह! सशक्त बिम्ब-विधान!

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    1. जी बहुत आभारी हूँ विश्वमोहन जी।
      सादर शुक्रिया।

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  6. सुंदर रचना प्रिय श्वेता। म्मनमोहक बिंब विधान सराहनीय है । सस्नेह शुभकामनायें🌹🌹💐💐

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    1. जी बहुत आभारी हूँ दी।
      सस्नेह शुक्रिया।
      सादर।

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  7. बेहद खूबसूरत

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    1. जी आभारी हूँ लोकेश जी।
      बहुत शुक्रिया।
      सादर।

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  8. दिनभर
    फुदकती है
    चिरैय्या
    गुलाबी किरणें
    चोंच में दबाये
    साँझ की आहट पा
    छिपा देती हैं,
    अपने घोंसलों में,
    प्राकृतिक दृश्यों को लेकर खूबसूरत रचना :(

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  9. शाम रहती तो कुछ पल ही है ...
    पर इतना कुछ समेटा होता है उसकी बुग्नी में ... जीवंत रचना

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  10. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 19 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  11. बहुत सुंदर रचना, श्वेता दी।

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  12. Beautiful description of beautiful evening with beautiful words.

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  13. दिन भर की थकान के बाद अपने घोंसले में लौटते ही जो सुकून हैं वो कही नहीं ,चाहें वो शाम" जीवन " की आखिरी शाम ही क्युँ ना हो ,सुंदर सृजन श्वेता जी ,सादर नमन

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  14. बहुत सुन्दर

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  15. प्रकृति प्रेम को करीने सा उकेरा है आपने श्वेता दीदी.
    हृदय स्पर्शी सृजन.
    सादर

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  16. वाह!!!!
    अद्भुत बिम्ब....लाजवाब सृजन।

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  17. जब दिन भर की हाय तौबा का वजूद ओर गहरा होता जाता है तब ऐसा सृजन बेहद रसदार लगता है।
    इस नीरस मानवता में आनंद भी छिपा है ठीक वैसी ही रचना है ये।
    उम्दा।

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  18. मैम, आपकी हर रचना, मुझे पहलेवाले से अधिक सुंदर और आनन्दकर और प्रेरणादायक लगती है। आपने प्रकृति के स्वरूप का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है।
    माता प्रकृति हमारी माँ है और हमारी सबसे अच्छी सखी भी। प्रकृति के निकट रहने से हमारे मन को बहुत शांति मिलती है और हमें सबसे अच्छी प्रेरणा भी प्रकृति ही देती है। आपकी यह कविता पढ़ कर एक बहुत ही सुंदर और निश्चिंत शाम की छवि आ जाती है। इसे पढ़ कर मेरी भी इच्छा हो रही है कि एक कप चाय ले कर , अपनी खिड़की पे बैठ कर सूर्यास्त देखा जाए। इतनी सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।