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Tuesday, 19 May 2020

क्या विशेष हो तुम?


ये तो सच है न!!
तुम
कोई वीर सैनिक नहीं,
जिनकी मृत्यु पर
 देश
गर्वित हो सके।

न ही कोई 
प्रतापी नेता
जिनकी मौत 
 के मातम में
 झंडे झुकाकर
 राष्ट्रीय शोक
 घोषित कर
 दिया जाए। 
 योगदान,त्याग
और बलिदान के
 प्रशस्ति-पत्र पढ़े जायें।

न ही कोई
अभिनेता
जिसकी मौत पर
 बिलखते,छाती पीटते
 प्रशंसकों द्वारा
धक्का-मुक्की कर
श्रद्धापुष्प अर्पित किये जाये,
उल्लेखनीय
जीवन-गाथाओं
की वंदना की जाए।

न ही तुम किसी
धर्म के ठेकेदार हो,
न धनाढ्य व्यापारी,
जिसकी मौत पर
आयोजित
 शोक सभाओं से
 किसी प्रकार का कोई
 लाभ मिल सके।

 कहो न!!
 क्या विशेष हो तुम?
 जिसकी गुमनाम  मौत पर
 क्रांति गीत गाया जाए?
 शोक मनाया जाए?
महामारी के दौर की
 एक चर्चित भीड़!
 सबसे बड़ी ख़बर,
 जिनके अंतहीन दुःख 
अब रोमांचक कहानियाँ हैं..?
जिनकी देह की
बदबू से बेहाल तंत्र
नाक-मुँह ढककर 
उपेक्षा की चादर लिए
राज्य की सीमाओं पर
प्रतीक्षारत है...
 संवेदना और सहानुभूति के
 मगरमच्छी आँसू और
हवाई श्रद्धांजलि 
पर्याप्त नहीं क्या?

 मौलिक अधिकारों के
 संवैधानिक प्रलाप से
 छले जानेवाले
ओ मूर्ख!!
तुम लोकतंत्र का 
मात्र एक वोट हो
और..
डकार मारती
तोंदियल व्यवस्थाओं के
लत-मर्दन से
मूर्छित
बेबस"भूख"

©श्वेता सिन्हा
१९मई२०२०

19 comments:

  1. बेहतरीन रचना सखी

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  2. संवेदनाओं के कराहते स्वर ,सटीक यथार्थवादी चित्र दिखाया आपने श्वेता , हृदय स्पर्शी सृजन ।

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  3. मौलिक अधिकारों के
    संवैधानिक प्रलाप से
    छले जानेवाले
    ओ मूर्ख!!
    तुम लोकतंत्र का
    मात्र एक वोट हो
    और..
    डकार मारती
    तोंदियल व्यवस्थाओं के
    लत-मर्दन से
    मूर्छित
    बेबस"भूख"।
    ......यथार्थ

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  4. तुम लोकतंत्र का
    मात्र एक वोट हो
    और..
    डकार मारती
    तोंदियल व्यवस्थाओं के
    लत-मर्दन से
    मूर्छित
    बेबस"भूख"।... नग्न सत्य!

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  5. अवव्स्थित व्यवस्था को खरी खरी ! सचमुच एक श्रमिक लोकतंत्र की मात्र एक वोट ही तो है , उस अकिंचन के लिए शोक का स्वांग भी कौन रचे | सार्थक रचना जो मर्म को छूती है | सस्नेह !

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  6. वाह!श्वेता ,समाज की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था पर करारा तमाचा ....। नग्न सत्य !

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  7. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 20 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. मौलिक अधिकारों के
    संवैधानिक प्रलाप से
    छले जानेवाले
    ओ मूर्ख!!
    तुम लोकतंत्र का
    मात्र एक वोट हो
    और..
    डकार मारती
    तोंदियल व्यवस्थाओं के
    लत-मर्दन से
    मूर्छित
    बेबस"भूख"।
    यथार्थ .....
    क्यों बहकावे में आकर धैर्य खो रहे हो सियासत के खेल खेले जा रहे हैं तुम्हारे नाम पर..समझो और धैर्य रखकर कुछ और सहो अपनी जगह पर रहकर
    कहाँ जाओगे सुख कहाँ है तुम्हारे लिए....
    समाज का कटु सत्य बयां करता बहुत ही लाजवाब सृजन....

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  9. सुंदर चित्रण

    आदत व स्वभाव बदल सकता है... अभ्यस्त हो चुके बदलना नहीं चाहते...
    शायद इस बार सुधरें तो आगे चेत में रहें... शायद

    सदा स्वस्थ्य रहें

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  10. जिनकी देह की
    बदबू से बेहाल तंत्र
    नाक-मुँह ढककर
    उपेक्षा की चादर लिए
    राज्य की सीमाओं पर
    प्रतीक्षारत है...
    संवेदना और सहानुभूति के
    मगरमच्छी आँसू और
    हवाई श्रद्धांजलि
    पर्याप्त नहीं क्या? बेहद मर्मस्पर्शी रचना

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  11. जिस देश में अपनी भूख को बचाने अपने ही देश में प्रवासी कहे जाए क्योंकि इस देश में इनका कोई महत्व नहीं है
    आपकी रचना इसी पीड़ा को उजागर करती है
    बधाई

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  12. तुम लोकतंत्र का मात्र एक वोट हो
    बेहतरीन रचना

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  13. बहुत सटीक, प्रभावी रचना ... ज़मीन से जुड़े पीछे बेंच पे बैठे इंसान की व्यथा को लिहा है ... मजदूर ... कोन जानना चाहता है ...

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  14. बेहद सशक्त और सटीक सृजन ...

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  15. कहो न!!
    क्या विशेष हो तुम?
    जिसकी गुमनाम मौत पर
    क्रांति गीत गाया जाए?
    शोक मनाया जाए?
    बिलकुल सही ,ये नेता अभिनेता या या वीर सैनिक तो नहीं जिनकी मौत का मातम मनाया जाए ,
    इनके मरने पर तो आसमा रो रहा है और इनकी कमी आज तो नहीं मगर आने वाले दिन में हमें भी जरूर रुलायेगी ,यथार्थ और मार्मिक सृजन श्वेता जी ,सादर नमन

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  16. सरकार के ख़िलाफ़ हम कब माने जाएंगे या
    सरकार से जवाब हम कब कर सकेंगे
    हमारा इंतजार कब तलक है?
    बेबसी और लाचारी के दिन भी गुजर जाएंगे
    शायद ये वो आख़िरी घड़ी है
    जिसके बाद अच्छे दिन आएंगे...
    और लोग हमें भी पहचानने लगेंगे।
    मौत तो हो हल्ले वाली ही चाहिए ना।
    उत्तम रचना।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।