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Friday, 1 January 2021

संभावनाओं की प्रतीक्षा


बुहारकर फेंके गये
तिनकों के ढेर 
चोंच में भरकर चिड़िया
उत्साह से दुबारा बुनती है
घरौंदा। 

कतारबद्ध,अनुशासित 
नन्हीं चीटियाँ 
बिलों के ध्वस्त होने के बाद
गिड़गिड़ाती नहीं,
दुबारा देखी जा सकती हैं 
निःशब्द गढ़ते हुए
जिजीविषा की परिभाषा। 
 
नन्ही मछलियाँ भी
पहचानती हैं
मछुआरों की गंध
छटपटाती वेदना से रोती हुई
जाल में कैद के साथियों की पीड़ा देख
किनारे पर न आने की 
सौंगध लेती हैं
पर,लहरों की अठखेलियों में
भूलकर सारा इतिहास
खेलने लगती हैं फिर से
मगन किनारों पर।

प्रमाणित है-
बीत रहा समय लौटकर नहीं आता
किंतु सीख रही हूँ...
सूरज, चंद, तारे,हवा,
चिड़ियों,चींटियों, मछलियों 
की तरह 
संसार के राग-विराग,
विसंगतियों से निर्विकार,अप्रभावित
एकाग्रचित्त,मौन,
अंतस स्वर के नेतृत्व में
कर्म में लीन रहना,
सोचती हूँ,
समय की धार में खेलती 
भावनाओं की बिखरी अस्थियाँ 
और आस-पास उड़ रही 
आत्मविश्वास की राख़ 
बटोरकर गूँथने से 
मन की देह फिर से
 आकार लेकर दुरूहताओं से
जूझने के लिए तैयार होगी  ।

ठूँठ पर बने नीड़,
माटी में दबे बीज के फूटने की आस
की तरह,
जटिल परिस्थितियों में
नयी संभावनाओं की प्रतीक्षा में
जीवन की सुगबुगाहट
महसूसने से ही
सृष्टि का अस्तित्व है।

#श्वेता सिन्हा
०१/०१/२०२१



31 comments:

  1. बीत रहा समय लौटकर नहीं आता
    किंतु सीख रही हूँ...
    सूरज, चंद, तारे,हवा,
    चिड़ियों,चींटियों, मछलियों
    की तरह
    संसार के राग-विराग,
    शानदार..
    सादर..

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    1. आपका स्नेह है दी।
      बहुत बहुत आभार।
      सादर।

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  3. बहुत सुंदर प्रिय श्वेता । संभावनाओं की प्रतीक्षा ही जीवन का भावनात्मक संबल है। यूँ ही लिखती रहो और यश बटोरती रहो। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार ❤🌹

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    1. आभारी हूँ प्रिय दी।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मिली आपने सदैव उत्साह बढ़ाया है।

      आपका स्नेह मिलता रहे।
      सादर।

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  4. हाँ श्वेता जी । आपकी यह अभिव्यक्ति सच्ची ही है । सब कुछ ख़त्म हो जाने पर भी फिर से शुरुआत करनी होती है । तूफ़ान में सब कुछ तहसनहस हो जाने के बाद भी नये नीड़ की नींव रखनी होती है । नवीन संभावनाओं की प्रतीक्षा करनी होती है । जीवन ऐसे ही चलता है क्योंकि वह ऐसे ही चल सकता है ।

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    1. विश्लेषात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
      सादर।

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  5. बहुत सुंदर l
    आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं l

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    1. बहुत आभारी हूँ आदरणीय मनोज जी।

      सादर।

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  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 01 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँ प्रिय दिबू।
      सस्नेह शुक्रिया।

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  7. नव निर्माण करना ही पड़ता है

    नववर्ष की बेला पर यही मंगलकामनाएं करते हैं कि ....
    नव वर्ष में नव पहल हो
    कठिन जीवन और सरल हो
    नए वर्ष का उगता सूरज
    सबके लिए सुनहरा पल हो

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीया दी।
      सादर।

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  8. प्रमाणित है-
    बीत रहा समय लौटकर नहीं आता
    किंतु सीख रही हूँ...
    सूरज, चंद, तारे,हवा,
    चिड़ियों,चींटियों, मछलियों
    की तरह
    संसार के राग-विराग,
    वाह बेहतरीन रचना श्वेता जी।
    आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँ अनुराधा जी।

      सस्नेह शुक्रिया।

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  9. नववर्ष मंगलमय हो सपरिवार सभी के लिये। सुन्दर सृजन।

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    1. बहुत बहुत आभारी हूँँ आदरणीय सर।
      आपका आशीष अनवरत मिलता रहे।

      सादर।

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  10. बहुत सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
      आपको भी अशेष शुभकामनाएं।
      सादर प्रणाम।

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  11. असीम शुभकामनाओं के संग हर पल मंगलकारी रहे की प्रार्थना
    सुन्दर सृजन

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीया दी।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मिलती रहे।
      शुक्रिया दी।

      सादर।

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  12. नयी संभावनाओं की प्रतीक्षा में
    जीवन की सुगबुगाहट
    महसूसने से ही
    सृष्टि का अस्तित्व है।


    सही कहा आपने श्वेता जी
    साधुवाद 🙏🏻
    नववर्ष मंगलमय हो
    🙏🏻☘️🍁🌷🍁☘️🙏🏻

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    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय वर्षा जी।
      प्रत्येक क्षण मंगलकारी हो।🙏🙏
      आपका स्नेह मिला आशीष बनाये रखें।
      सादर।

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  13. Replies
    1. बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
      सादर।

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  14. आपबीती को भूल कर
    फिर से वही भूल करना
    भूल नहीं होती जरूरत होती है
    जरूरत के इस पेड़ को चाहिए उत्साह और उमंग
    सफलता और खुशी दोनों जरूरत के पेड़ पर लगे फल हैं।
    उम्दा उम्दा और उम्दा।

    नई रचना समानता २

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  15. एकाग्रचित्त,मौन,
    अंतस स्वर के नेतृत्व में
    कर्म में लीन रहना।
    शानदार पंक्तियाँ।

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  16. जीवन की सुगबुगाहट ही जीवन की साँसों की परिभाषा है ...
    बीती को बिसारना ही होता है ... नै आशा नए सूरज का स्वागत करना जरूरी है ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  17. समय की धार में खेलती
    भावनाओं की बिखरी अस्थियाँ
    और आस-पास उड़ रही
    आत्मविश्वास की राख़
    बटोरकर गूँथने से
    मन की देह फिर से
    आकार लेकर दुरूहताओं से
    जूझने के लिए तैयार होगी ।
    जरूर होगी बशर्ते मन की देह याद रखे जीवन की सच्चाई....।
    बहुत ही लाजवाब सृजन ।

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  18. बहुत बहुत सुन्दर

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  19. संभावनाओं की प्रतीक्षा में है जग सारा..

    आपने संसार के सुव्यस्थित होने की बहुत सही वजह बताई है.. बहुत सुंदर रचना..

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।