Pages

Sunday, 4 July 2021

जूझना होगा


त्म हो रही
आशाओं से
ठहरने की विनती करना
व्यर्थ है,
उन्हें रोकने के लिए
जूझना होगा नैराश्य से
आशा को निराशा के जबड़े से
खींचते समय उसकी
नुकीली दंतपंक्तियों से
लहुलूहान उंगलियों के
घावों को
करना होगा अनदेखा।

जूझना होगा...
झोली फैलाये, भाग्य भरोसे
नभ ताकती अकर्मण्यताओं से...
आशा की चिरौरी में
बाँधी गयी मनौतियों के कच्चे धागे 
प्रार्थनाओं की कातर स्वर लहरियों से
अनुकम्पा बरसने की बाँझ प्रतीक्षा को 
बदलना होगा उर्वरता में
 जोतने होंगे 
 कर्मठता के खेत
 बहाने होंगे अमूल्य स्वेद।

जूझना होगा...
अनजाने झंझावातों से 
आस को बुझाने के लिए
अचानक उठी आँधियों से
घबराकर बुझने के पहले
दृढ़ आत्मबल की हथेलियों से
 नन्हीं लौ की घेराबंदी
बचा ही लेगी 
उजाले की कोई 
 किरण।

और...
आशा के लिए जूझते समय
समय को कोसने की जगह
करना होगा पलों से संवाद 
कदाचित्...
तुम्हारी जुझारूपन की
ज्योर्तिमय गाथा
समय की कील पर टंगी
 नैराश्य की पोटली में
बंद सुबकती आत्माओं
की मृतप्राय रगो में
भर दे प्रेरणा की
संजीवनी।

--------////-------



#श्वेता सिन्हा
४ जुलाई २०२१

21 comments:

  1. आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    ReplyDelete
  2. निराशा के जबड़ों से खींच कर लेनी होगी आशा कितना जोश दिलाने वाला बिम्ब चुना है । भाग्यभरोसे न बैठ कर कर्मठता दिखानी होगी और अपना पसीना बहाना होगा , जुझारू बनने की प्रेरणा देती बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
    समय को कोसने के बजाय समय को समझते हुए यदि कर्म करो तो औरों को भी जुझारू बनने की प्रेरणा मिल सके ।
    झकझोर देने वाली रचना ।
    यूँ ही कलम चलती रहे ( उँगलियाँ टाइप करती रहें ) 😄😄

    ReplyDelete
  3. झोली फैलाये, भाग्य भरोसे//नभ ताकती अकर्मण्यताओं से...///आशा की चिरौरी में//बाँधी गयी मनौतियों के कच्चे धागे //प्रार्थनाओं की कातर स्वर लहरियों से
    अनुकम्पा बरसने की बाँझ प्रतीक्षा को //बदलना होगा उर्वरता में// जोतने होंगे //कर्मठता के खेत//बहाने होंगे//अमूल्य स्वेद।///
    बहुत खूब प्रिय श्वेता!
    सोई लेखनी जगी तो तो आशाओं और अपेक्षा की नई परिभाषा गढ़कर जगी। स्वेदरस से सराबोर कर्मशीलता जीवन में सौभाग्य और प्रगति का आधार है । हाथों की लकीरों में इन्हें ढूंढने वाले अकर्मण्य पुरुष जहां के तहां रह जाते हैं। तुम्हारी खास शैली में ये प्रभावी अभिव्यक्ति सराहना से परे है। अपने नए पाठकों को अपने गीतों से भी परिचित करवाओ। ढेरों शुभकामनाएं और प्यार ❤️🌷

    ReplyDelete
  4. यथार्थ..
    समय की कील पर टंगी
    नैराश्य की पोटली में
    बंद सुबकती आत्माओं
    की मृतप्राय रगो में
    भर दे प्रेरणा की
    संजीवनी।
    सुंदर पंक्तियाँ
    सादर..

    ReplyDelete

  5. और...
    आशा के लिए जूझते समय
    समय को कोसने की जगह
    करना होगा पलों से संवाद
    कदाचित्...
    तुम्हारी जुझारूपन की
    ज्योर्तिमय गाथा
    समय की कील पर टंगी
    नैराश्य की पोटली में
    बंद सुबकती आत्माओं
    की मृतप्राय रगो में
    भर दे प्रेरणा की
    संजीवनी।...हर परिस्थिति से जूझने का जज्बा व संकल्प की चेतना देती सुंदर रचना, ऐसी रचनाएं आज के समय की प्रेरणा बनती हैं ।

    ReplyDelete
  6. अकर्म से कर्म की ओर...सुन्दर संदेश देती रचना!!

    ReplyDelete
  7. समय को कोसने की जगह करना होगा पलों से संवाद .....वाह!श्वेता क्या बात कही है .दिल की गहराइयों में जाकर उतर गई ।

    ReplyDelete
  8. कदाचित्...
    तुम्हारी जुझारूपन की
    ज्योर्तिमय गाथा
    समय की कील पर टंगी
    नैराश्य की पोटली में
    बंद सुबकती आत्माओं
    की मृतप्राय रगो में
    भर दे प्रेरणा की
    संजीवनी।
    अत्यंत सुन्दर भावों का सृजन ।

    ReplyDelete
  9. सुंदर जीजीविषा से भरी बहुत सुंदर लेखनी।
    बधाई।

    ReplyDelete
  10. जूझना होगा नैराश्य से
    आशा को निराशा के जबड़े से
    खींचते समय उसकी
    नुकीली दंतपंक्तियों से
    लहुलूहान उंगलियों के
    घावों को
    करना होगा अनदेखा।---ओहो...कितना गहन लिखा है आपने। सच आपकी यह रचना बहुत गहन तक सोचने पर विवश कर रही है। बधाई आपको श्वेता जी।

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर संदेश देती रचना श्वेता जी।

    ReplyDelete
  12. आशा की चिरौरी में
    बाँधी गयी मनौतियों के कच्चे धागे
    मनभावन..उलाहना/संदेश
    सादर नमन..

    ReplyDelete
  13. उर्वरता में
    जोतने होंगे
    कर्मठता के खेत
    बहाने होंगे अमूल्य स्वेद।

    जूझना होगा...
    अनजाने झंझावातों से
    आस को बुझाने के लिए
    अचानक उठी आँधियों से

    निराशा के जबड़ों से खींच कर लेनी होगी आशा

    समय को कोसने की जगह करना होगा पलों से संवाद
    बहुत ही प्रेरक...।शब्द शब्द जोशमय...
    कर्मठता की सीख देती लाजवाब रचना।
    वाह!!!

    ReplyDelete
  14. अपने अपने कर्तव्य निभाने के लिए जूझना होगा
    सार्थक संदेश देती हुई सुंदर रचना

    ReplyDelete
  15. और...
    आशा के लिए जूझते समय
    समय को कोसने की जगह
    करना होगा पलों से संवाद
    कदाचित्...
    तुम्हारी जुझारूपन की
    ज्योर्तिमय गाथा
    समय की कील पर टंगी
    नैराश्य की पोटली में
    बंद सुबकती आत्माओं
    की मृतप्राय रगो में
    भर दे प्रेरणा की
    संजीवनी।
    बहुत सुन्दर रचना👏👏

    ReplyDelete
  16. इस मुश्किल वक़्त में जब कि -हर कोई उलझा हुआ है अपने कर्म को भी नहीं समझ पा रहा है ऐसे में अकर्म से कर्मठ होने की सीख देती लाज़बाब सृजन श्वेता जी,सादर नमन

    ReplyDelete
  17. आशा के लिए जूझते समय
    समय को कोसने की जगह
    करना होगा पलों से संवाद
    आशा का संचार करती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  18. इस रचना में कई जगह ऐसे अनूठे प्रयोग हुए हैं जो हमें शब्दों के प्रयोग की शक्ति एवं सौंदर्य का परिचय देते हैं। शब्दों को इस तरह रचना गहन चिंतन और अथाह भावनाओं का परिणाम है जो आपकी लेखनी में मिलता है।
    जैसे :
    झोली फैलाये, भाग्य भरोसे------बदलना होगा उर्वरता में
    और -
    दृढ़ आत्मबल की हथेलियों से
    नन्हीं लौ की घेराबंदी
    बचा ही लेगी उजाले की कोई किरण।
    बहुत गहन, प्रेरणादायक, संदेशप्रद रचना।

    ReplyDelete
  19. आत्म प्रेरणा और कर्मठ स्वभाव हमें हमारी नकरात्मकता के जाल से बचा सकती है।
    आत्म प्रेरणा भी खून पसीना एक व कड़ी मेहनत मांगती है।
    बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  20. सशक्त एवं सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।