अंधपरंपराओं पर लिखी गयी
प्रसिद्ध पुस्तकें,
घिसी-पिटी रीति-रिवाज़ों पर आधारित
दैनंदिन जीवन के आडंबर पर
प्रस्तुत शोधपत्र
लेख,कहानियां, कविताओं में
चित्रित मर्मस्पर्शी उद्धरण
इन्हीं सराहनीय कर्मों के अनुसार
राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
विश्व पटल पर पुरस्कृत,
सम्मानित किये जाते
लेखक,शोधार्थी, समाजसेवी,पर्यावरणविद
और भी न जाने कौन-कौन...।
प्रसिद्ध पुस्तकें,
घिसी-पिटी रीति-रिवाज़ों पर आधारित
दैनंदिन जीवन के आडंबर पर
प्रस्तुत शोधपत्र
लेख,कहानियां, कविताओं में
चित्रित मर्मस्पर्शी उद्धरण
इन्हीं सराहनीय कर्मों के अनुसार
राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
विश्व पटल पर पुरस्कृत,
सम्मानित किये जाते
लेखक,शोधार्थी, समाजसेवी,पर्यावरणविद
और भी न जाने कौन-कौन...।
हाशिये पर पड़े
उपेक्षितों को
अंधविश्वास से मुक्त कर
स्वस्थ वातावरण प्रदान करने की
मुहिम में जुटे हुए अनगिनत लोग
संकरी,दुरूह
पगडंडियों से उतरकर
खोह में बसे
जड़ों को जकड़े अंधविश्वास के कीड़़े को
विश्वास के चिमटे से खींचकर
निकालने का उपक्रम करते हैं...।
कुछ इने-गिने बागवां
सच्चे प्रयासों की खुरपी लिए
आजीवन खोदते हैं पाताल में गुम
कुरीतियों की जड़़ों को,
करते रहते हैं
वैचारिकी खर-पतवार
निकालने का यत्न,
किंतु अधिकतर
संघर्षों की पाटी के मध्य
पिसते, जूझते लोगों को छूकर देखते है
उनके दुख पर
संवेदना प्रकटकर
मार्मिक संस्मरणों की
पोटली बटोरकर
पर्याप्त संसाधन जुटाने का दिलासा देकर
वापस शहर की ओर लौट जाते हैं...।
पोटली बटोरकर
पर्याप्त संसाधन जुटाने का दिलासा देकर
वापस शहर की ओर लौट जाते हैं...।
अंधपरंपराओं की कोठरी की
झिर्रियों से रिसता ज़हरीला धुँआ
निडर,बेखौफ़ निगलता रहता है
अपना कमज़ोर शिकार चुपचाप
अनवरत...,
और....
प्रतिष्ठित सभागारों में
कुरीतियों के लिए संघर्षरत योद्धा और
उनकी पुस्तकें सम्मानित होती हैं,
अंधविश्वासों को ऊपर से झाड़-पोंछकर
पहना दिया जाता है
कलफ लगा लबादा
कुछ महत्वपूर्ण तिथियों को
जुलूस,धरना,प्रदर्शन में
आक्रोश के उबलते भावुक शब्दचित्रों का
जीवंत रूपांतरण किया जाता है
भावनाओं की लहरों में डुबकी लगा-लगाकर
उन्हीं पुराने वाक्यांशों से
नये उद्धोष किये जाते हैं
अंधपरंपराओं को
नारों से बदलने का
संकल्प लेकर।
झिर्रियों से रिसता ज़हरीला धुँआ
निडर,बेखौफ़ निगलता रहता है
अपना कमज़ोर शिकार चुपचाप
अनवरत...,
और....
प्रतिष्ठित सभागारों में
कुरीतियों के लिए संघर्षरत योद्धा और
उनकी पुस्तकें सम्मानित होती हैं,
अंधविश्वासों को ऊपर से झाड़-पोंछकर
पहना दिया जाता है
कलफ लगा लबादा
कुछ महत्वपूर्ण तिथियों को
जुलूस,धरना,प्रदर्शन में
आक्रोश के उबलते भावुक शब्दचित्रों का
जीवंत रूपांतरण किया जाता है
भावनाओं की लहरों में डुबकी लगा-लगाकर
उन्हीं पुराने वाक्यांशों से
नये उद्धोष किये जाते हैं
अंधपरंपराओं को
नारों से बदलने का
संकल्प लेकर।
#श्वेता सिन्हा
तब भी लिखी जाती थी
ReplyDeleteऔर अब वही दुहराई जाती है
..अंधपरंपराओं पर लिखी गयी
प्रसिद्ध पुस्तकें,
घिसी-पिटी रीति-रिवाज़ों पर आधारित
दैनंदिन जीवन के आडंबर पर
प्रस्तुत शोधपत्र
सादर
आपकी लिखी रचना सोमवार. 20 दिसंबर 2021 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बढ़िया और विचारोत्तेजक रचना प्रिय श्वेता। वंचना और प्रवंचना का युग है। कथित समाज सुधारक आते हैं उनकी अपनी उपलब्धियां बढ़ती है पर समाज में कोई सुधार नहीं होता। इसके साथ जितने मानवाधिकार आयोग बने पर शोषित मानव अधिकार से वंचित रहे और पीड़ित रहे। टी वी चैनल गरीबों की गरीबी की तस्वीरें दिखा विज्ञापन बटोर मालामाल हो रहे । किताबों में करुण कथाएँ छपकर लेखकों को सम्मान दिला रही, सच है पुराने शब्दों से नए नारे गढ़े जा रहे पर विपन्नता और शोषण बीका इतिहास जस का तस है। हां कुछेक जनसेवक चुपचाप अपना काम कर रहे बिना किसी विज्ञप्ति के शायद उन्हीं के दम से मानवाता एक गहन मंथन से उपजी इस सार्थक और सराहनीय रचना के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजुलूस,धरना,प्रदर्शन में
ReplyDeleteआक्रोश के उबलते भावुक शब्दचित्रों का
जीवंत रूपांतरण किया जाता है
भावनाओं की लहरों में डुबकी लगा-लगाकर
उन्हीं पुराने वाक्यांशों से
नये उद्धोष किये जाते हैं
अंधपरंपराओं को
नारों से बदलने का
संकल्प लेकर।👌👌👌👌👌👌👌
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-12-2021 ) को 'चार दिन की जिन्दगी, बाकी अंधेरी रात है' (चर्चा अंक 4284) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सत्य और सटीक लिखा है आपने आ0
ReplyDeleteसटीक! विचारोत्तेजक रचना श्वेता हर विसंगति पर ठोस प्रहार किया है आपने इंगित किया है हर अशोभनीय सच को, झूठे ढकोसलों पर निशाना।
ReplyDeleteयथार्थ लेखन।
साधुवाद।
बदलाव लाना आसान नहीं होता किसी के लिए भी। वे कुछ समाज सुधारक जो बदलाव की बयार की बातें करते हैं अक्सर बदलाव के तामझाम वे अपने में जरूर जबरदस्त बदलाव लेे आते हैं। बदलाव की हवा में उनके दिन फिर जाते हैं तो वे फिर हवा हवाई फायर करते रहते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छी विचाारोत्तेजक रचना
बहुत सुंदर, सच्चाई उजागर करती हुई अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकिंतु अधिकतर
ReplyDeleteसंघर्षों की पाटी के मध्य
पिसते, जूझते लोगों को छूकर देखते है
उनके दुख पर
संवेदना प्रकटकर
मार्मिक संस्मरणों की
पोटली बटोरकर
पर्याप्त संसाधन जुटाने का दिलासा देकर
वापस शहर की ओर लौट जाते हैं...।
एकदम सटीक... बस उन्हीं मार्मिक संस्मरणों पर वे ख्याति प्राप्त कर आगे बढ़ते हैं इन्हें और भी पीछे और नीचे धकेलकर....
बहुत ही सारगर्भित सार्थक जवं विचरोत्तोजक
लाजवाब सृजन।
श्वेता दी, अक्सर ऐसा ही होता है कि कथित समाजसुधारक समाज सुधारने की कोशिश करते तो दिखते है लेकिन समाज नही सुधरता। विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteचिंतनपूर्ण, सारगर्भित बिंदुओं को उठाती बहुत ही गहन रचना ।
ReplyDeleteसटीकता के साथ लिखी.गई एक अच्छी रचना।
ReplyDeleteवाह!क्या खूब कहा आदरणीय श्वेता दी गज़ब 👌
ReplyDeleteनववर्ष की आपको हार्दिक हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर स्नेह
पुरानी मान्यताओं और अंधविश्वासों की जड़ें बहुत गहरी होती हैं, इन्हें तोड़ने के लिए अनवरत संघर्ष जारी रखना होगा
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