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Wednesday, 12 March 2025

बचाना अपने भीतर


सरक रहे हैं

तनों की सुडौल देह से

पातों के उत्तरीय,

टहनियों की नाजुक 

कलाइयों से 

टूटकर बिखर रही हैं 

खनकती हरी चुड़ियाँ।


निर्वस्त्र हुए वृक्षों पर

पक्षियों के रहस्य और

हैं धमनियों के जाल;


टूटे,झरे,निराशा के ठूँठ पर

नन्हीं,कोमल,आशाओं से भरी

पत्ती मुस्कुराती है;

नारंगी भोर कुलाचें भरकर

टहक सांझ में बदल जाती है।


सुनो...

जीवन है पतझड़ और बसंत 

कभी लगे अंत तो कभी अनंत

ऋतुओं के दंश से घबराकर

जड़ न होकर

जड़ बन जाना

हर मौसम से बे-असर रह जाना

पतझड़ में धैर्य रखकर;

वसंत और बरखा को बचाना अपने भीतर

इस संसार को सुंदर,जीवंत और 

नम बनाए रखने के लिए...। 

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-श्वेता
१२ मार्च २०२५

7 comments:

  1. पतझड़ में धैर्य रखकर;
    वसंत और बरखा को बचाना
    सुंदर चिंतन
    आभार
    सादर
    वंदन

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  2. बहुत सुंदर पाठ , जिसे जीवन में उतार मानव कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी डटकर साहस के साथ हरेक चीज का सामना करने के लिए तैयार रहे सकता है ।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 15 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. वाह ! जीवन में आने वाली हर चुनौती को स्वीकार करने की सीख देने वाली सुंदर रचना, जीवन इसी का तो नाम है

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  5. सुन्दर | होली की शुभकामनाएँ |

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  6. सरक रहे हैं
    तनों की सुडौल देह से
    पातों के उत्तरीय,
    टहनियों की नाजुक
    कलाइयों से
    टूटकर बिखर रही हैं
    खनकती हरी चुड़ियाँ।
    अप्रतिम , सजीव बिंब, मानवीकरण का सुंदर प्रयोग.

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  7. सुंदर कल्पना♥️♥️

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।