मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Showing posts with label
कलम के सिपाही.....सामाजिक कविता
.
Show all posts
Showing posts with label
कलम के सिपाही.....सामाजिक कविता
.
Show all posts
Tuesday, 31 July 2018
क़लम के सिपाही
›
क़लम के सिपाही, जाने कहाँ तुम खो गये? है ढूँढती लाचार आँख़ें सपने तुम जो बो गये अन्नदाता अन्न को तरसे मरते कर्ज और भूख से ...
15 comments:
›
Home
View web version