मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 3 April 2021
चलन से बाहर...(कुछ मुक्तक)
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१) बिना जाने-सोचे उंगलियाँ उठा देते हैं लोग बातों से बात की चिंगारियाँ उड़ा देते हैं लोग अख़बार कोई पढ़ता नहीं चाय में डालकर किसी के दर्द को सु...
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