मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 19 December 2018
चाँद..
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तन्हाई की आँच में टुकड़ों में गल रहा है चाँद, दामन से आसमाँ के देखो! पिघल रहा है चाँद। छत की मुंडेरों पर झुकी हैंं पलके...
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