मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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छंदमुक्त
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Wednesday, 10 June 2020
क्या तुम नहीं डरते?
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सुनो ओ!जंगल के दावेदारों विकास के नाम पर लालच और स्वार्थ की कुल्हाड़ी लिए तुम्हारी जड़ को धीरे-धीरे बंजर करते, तुम्हारी आँखों...
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Thursday, 1 August 2019
साधारण स्त्री
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करारी कचौरियाँ, मावा वाली गुझिया, रसदार मालपुआ, खुशबूदार पुलाव, चटपटे चाट, तरह-तरह के व्यंजन चाव से सीखती क्योंकि उसे ...
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