मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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जलते चूल्हे.... छंदमुक्त कविता...सामाजिक चिंतन
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Sunday, 26 April 2020
जलते चूल्हे
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भूख के एहसास पर आदिम युग से सभ्यताओं के पनपने के पूर्व अनवरत,अविराम जलते चूल्हे... जिस पर खदकता रहता हैं अतृप्त पेट के लिए...
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