मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 16 May 2018
पेड़ बचाओ,जीवन बचाओ
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हाँ,मैंने भी देखा है चारकोल की सड़कें फैल रही ही है सुरम्य पेड़ों से आच्छादित सर्पीली घाटियों में, सभ्य हो रहे है हम निर्वस्त्...
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