मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 28 September 2017
नारी हूँ मै
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सृष्टि के सृजन का अधिकार प्रभु रूप सम एक अवतार नारी हूँ मैं धरा पर बिखराती कण कण में खुशबू, सुंगध बहार, आदर्श और नियमोंं...
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Monday, 17 July 2017
व्यर्थ नहीं हूँ मैं
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व्यर्थ नहीं हूँ मैं, मुझसे ही तुम्हारा अर्थ है धरा से अंबर तक फैले मेरे आँचल में पनपते है सारे सुनहरे स्वप्न तुम्हारे मुझसे ही तो ...
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