मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 6 July 2017
संभव नहीं
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राह के कंटकों से हार मानूँ मैं,संभव नहीं। बिना लड़े जीवन भार मानूँ मैं,संभव नहीं। हंसकर,रोकर ,ख्वाहिश बोकर,भूल गम खुशियो...
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