मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 21 July 2017
हे, अतिथि तुम कब जाओगे??
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जलती धरा पर छनकती पानी की बूँदें बुदबुदाने लगी, आस से ताकती घनविहीन आसमां को , पनीली पीली आँखें अब हरी हो जाने लगी , बरखा से पहले उ...
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Tuesday, 4 July 2017
सच के धरातल पर बरखा
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भोर की अधखुली पलकों में अलसाये ज्यों ही खिड़कियों के परदे सरकाये एक नम का शीतल झोके ने दुलराया झरोखे के बाहर फैले मनोरम दृश्य से मन का...
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