मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 22 December 2017
सूरज तुम जग जाओ न
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धुँधला धुँधला लगे है सूरज आज बड़ा अलसाये है दिन चढ़ा देखो न कितना क्यूँ.न ठीक से जागे है छुपा रहा मुखड़े को कैसे ज्यों रजाई स...
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