मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday 7 March 2018
नारी : कही-अनकही
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जीवन की बगिया की मैं पुष्प सुरभित सुकुमारी सृष्टि बीज कोख में सींचती सुवासित करती धरा की क्यारी मैं मोम हृदय स्नेह की आँच से ...
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Wednesday 28 February 2018
होली के रंग
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हृदय भरा उल्लास हथेलियों में मल रंग लिये, सुगंधहीन पलाश बिखरी तन में मादक गंध लिये। जला के ईष्या,द्वेष की होलिका राख मले म...
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Tuesday 20 February 2018
पलाश
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पिघल रही सर्दियाँ झर रहे वृक्षों के पात निर्जन वन के दामन में खिलने लगे पलाश सुंदरता बिखरी फाग की चटख रंग उतरे घर आँगन ल...
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Friday 16 February 2018
ब्लॉग की सालगिरह.... चाँद की किरणें
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सालभर बीत गये कैसे...पता ही नहीं चला। हाँ, आज ही के दिन १६फरवरी२०१७ को पहली बार ब्लॉग पर लिखना शुरु किये थे। कुछ पता नहीं था ब्लॉग के बा...
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Wednesday 14 February 2018
निषिद्ध प्रेम नहीं
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स्मृति पीड़ा की अमरबेल मन से बिसराना चाहती हूँ मैं न भाये जग के कोलाहल प्रियतम,मुस्काना चाहती हूँ मैं मौसम की मधुमय प्रीति ...
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Sunday 11 February 2018
चिरयौवन प्रेम
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तुम्हारे गुस्से भरे बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में बैशाख की...
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Friday 9 February 2018
पंखुड़ियाँ
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पंखुड़ियाँ 24 कहानी 24 लेखक आप सभी को यह बताते हुये हर्ष हो रहा है कि डिजिटल कहानी संग्रह "पंखुड़ियाँ" में मेरी भी कहानी ...
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Wednesday 7 February 2018
वो गुम रहे
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वो गुम रहे अपने ही ख़्यालों की धूल में करते रहे तलाश जिन्हें फूल-फूल में गीली हवा की लम्स ने सिहरा दिया बदन यादों ने उनकी छू लि...
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