मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Sunday 30 September 2018
गहरा रंग
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उँघती भोर में चिड़ियों के कलरव के साथ आँखें मिचमिचाती ,अलसाती चाय की महक में घुली किरणों की सोंधी छुअन पत्तों ,फूलों,दूबों पर...
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Thursday 27 September 2018
तुम खुश हो तो अच्छा है
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मन दर्पण को दे पत्थर की भेंट तुम खुश हो तो अच्छा है मुस्कानों का करके गर आखेट तुम खुश हो तो अच्छा है मरु हृदय में ढूँढता छाय...
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Saturday 22 September 2018
तृष्णा
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मदिर प्रीत की चाह लिये हिय तृष्णा में भरमाई रे जानूँ न जोगी काहे सुध-बुध खोई पगलाई रे सपनों के चंदन वन महके चंचल पाखी मधु...
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Wednesday 19 September 2018
समुंदर
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मोह के समुंदर में डूबता उतराता मन छटपटाती लहर भाव की वेग से आती आहृलादित होकर किलकती,शोर मचाती बहा ले जाना चाहती है अपनी म...
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Sunday 9 September 2018
मितवा मेरे
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हिय की हुकहुक सुन जा रे ओ बेदर्दी मितवा मेरे जान के यूँ अनजान न बन ओ निर्मोही मितवा मेरे माना कि तेरे सपनों की, सुंदर तस्...
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Wednesday 5 September 2018
शिक्षक
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नित नन्हे माटी के दीपक गढ़ते, नव अंकुरित भविष्य के रक्षक हैं । सपनों में इंद्रधनुषी रंग भरने वाले, अद्वितीय चित्रकार शिक्षक हैं। ...
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Saturday 1 September 2018
स्वर खो देती हूँ
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पग-पग के अवरोधों से मैं घबराकर रो देती हूँ झंझावातों से डर-डरकर समय बहुमूल्य खो देती हूँ संसृति की मायावी भँवरों में सुख-दु...
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Thursday 30 August 2018
जागृति
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असहमति और विरोध पर, एकतरफ़ा फ़रमान ज़ारी है। हलक़ से ख़ींच ज़ुबान काटेंगे, बहुरुपियों के हाथ में आरी है। कोई नहीं वंचित और पीड़ित! ...
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