मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Thursday, 11 May 2017
बेबसी
›
ऊफ्फ्...कितनी तेज धूप है.....बड़बड़ाती दुपट्टे से पसीना पोंछती मैं शॉप से बाहर आ गयी।इतनी झुलसाती गरमी में घर से बाहर निकलने का शौक नहीं ...
6 comments:
Wednesday, 10 May 2017
कभी यूँ भी तो हो
›
कभी यूँ भी तो हो.... साँझ की मुँडेर पे चुपचाप तेरे गीत गुनगुनाते हुए बंद कर पलको की चिलमन को एहसास की चादर ओढ़ तेरे ख्याल में खो जाय...
5 comments:
ख्याल आपके
›
ख़्वाहिश जैसे ही ख़्याल आपके। आँखें पूछे लाखों सवाल आपके।। अब तक खुशबू से महक रहे है, फूल बन गये है रूमाल आपके। सुरुर बन चढ़ गय...
8 comments:
Tuesday, 9 May 2017
ख्वाब
›
खामोश रात के दामन में, जब झील में पेड़ों के साये, गहरी नींद में सो जाते हैंं उदास झील को दर्पण बना अपना मुखड़ा निहारता, चाँद मुस्कुरात...
2 comments:
तितलियाँ
›
रंगीन ख्वाबों सी आँख में भरी तितलियाँ ओस की बूँदों सी पत्तों पे ठहरी तितलियाँ गुनगुनाने लगा दिल बन गया चमन कोई गुल के पराग लबों पे ब...
10 comments:
Monday, 8 May 2017
मिराज़ सा छलना
›
सुबह का चलकर शाम में ढलना जीवन का हर दिन जिस्म बदलना हसरतों की रेत पे दर्या उम्मीद की खुशी की चाह में मिराज़ सा छलना चुभते हो काँटें...
2 comments:
Saturday, 6 May 2017
कुछ पल सुकून के
›
गहमा-गहमी ,भागम भाग अचानक से थम गयी जैसे....घड़ी की सूईयों पर टिकी भोर की भागदौड़....सबको हड़बड़ी होती है...अपने गंतव्य पर समय पर पहुँ...
4 comments:
Thursday, 4 May 2017
तुम बिन
›
जलते दोपहर का मौन अनायास ही उतर आया भर गया कोना कोना मन के शांत गलियारे का कसकर बंद तो किये थे दरवाज़े मन के, फिर भी ये धूप अंदर तक ...
10 comments:
‹
›
Home
View web version