मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 26 August 2017
मौन हो तुम
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मौन हो तुम गुनगुनाते वीणा मधुर आलाप हो मंद मंद सुलगा रहा मन अतृप्त प्रेम का ताप हो नैन दर्पण आ बसे तुम स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे प्...
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Wednesday, 23 August 2017
तीज
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जय माता पार्वती जय हो बाबा शंकर रख दीजे हाथ माथे कृपा करे हमपर अटल सुहाग माँगे कर तीज व्रत हम बना रहे जुग जुग साथ और सत सब माँग का सि...
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Monday, 21 August 2017
मैं रहूँ न रहूँ
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फूलेंगे हरसिंगार प्रकृति करेगी नित नये श्रृंगार सूरज जोगी बनेगा ओढ़ बादल डोलेगा द्वार द्वार झाँकेगी भोर आसमाँ की खिड़की से किरणें धरा क...
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Sunday, 20 August 2017
हादसा
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हंसते बोलते बतियाते लोग पोटली में बँधे सफर की ख्वाहिशें अपनों के साथ कुछ सपनों की बातें अनजानों के साथ समसामयिक चर्चायें अचार और पूरि...
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Friday, 18 August 2017
युद्ध
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(1) जीवन मानव का हर पल एक युद्ध है मन के अंतर्द्वन्द्व का स्वयं के विरुद्ध स्वयं से सत्य और असत्य के सीमा रेखा पर झूलते असंख्...
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Thursday, 17 August 2017
तन्हाई के पल
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तन्हाई के उस लम्हें में जब तुम उग आते हो मेरे भीतर गहरी जड़े लिये काँटों सी चुभती छटपटाहटों में भी फैल जाती है भीनी भीनी सुर्ख गुल...
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Wednesday, 16 August 2017
सोये ख्वाबों को
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सोये ख्वाबों को जगाकर चल दिए आग मोहब्बत की जलाकर चल दिए खुशबू से भर गयी गलियाँ दिल की एक खत सिरहाने दबाकर चल दिये रात भर चाँद करत...
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Tuesday, 15 August 2017
उड़े तिरंगा शान से
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उन्मुक्त गगन के भाल पर उड़े तिरंगा शान से कहे कहानी आज़ादी की लहराये सम्मान से रक्त से सींच रहे नित जिसे देकर अपने बहुमूल्य प्राण रख...
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