मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday 12 January 2018
तेरे नेह में
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तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा ब...
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Tuesday 9 January 2018
अंकुराई धरा
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धूप की उंगलियों ने छू लिया अलसाया तन सर्द हवाओं की शरारतों से तितली-सा फुदका मन तन्वंगी कनक के बाणों से कट गये कुहरीले पा...
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Friday 5 January 2018
आज फिर.....
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आज फिर किरिचियाँ ज़िंदगी की तन्हाई में भर गयीं। कुछ अधूरी ख़्वाहिशों की छुअन से चाहतें सिहर गयीं।। लाख़ कोशिशों के बावजूद तुम ख़...
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Wednesday 3 January 2018
तुम्हारा ख़्याल
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गहराते रात के साये में सुबह से दौड़ता-भागता शहर थककर सुस्त क़दमों से चलने लगा जलती-बुझती तेज़ -फीकी दूधिया-पीली रोशनी के जगमगात...
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Sunday 31 December 2017
नववर्ष
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रात की बोझिल उदासी को किरणों की मुस्कान से खोलता शीत का दुशाला ओढ़े क्षितिज के झरोखे से झाँकता बादलों के पंख पर उड़कर हौले-हौले ...
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Friday 29 December 2017
नन्ही ख़्वाहिश
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एक नन्ही ख़्वाहिश चाँदनी को अंजुरी में भरने की, पिघलकर उंगलियों से टपकती अंधेरे में ग़ुम होती चाँदनी देखकर उदास रात के दामन...
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Tuesday 26 December 2017
बदलते साल में....
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सोचते हैं इस नये साल में क्या बदल जाएगा....? तारीख़ के साथ किसका हाल बदल जाएगा। सूरज,चंदा,तारे और फूल ...
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Saturday 23 December 2017
लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे..
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अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे। दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।। पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम। उम्रे-रवाँ के ख़्व...
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