मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Friday, 2 February 2018
कोमल मन हूँ मैं
›
ज्योति मैं पूजा की पावन गीतिका की छंद हूँ मैं धरा गगन के मध्य फैली एक क्षितिज निर्द्वन्द्व हूँ मैं नभ के तारों में नहीं हूँ ना च...
20 comments:
Tuesday, 30 January 2018
इंद्रधनुष
›
मौन की चादर डाले नीले आसमान पर छींटदार श्वेत बादलों की छाँव में बाँह पसारे हवाओं के संग बहते परिंदे मानो वक़्त के समुन्द...
18 comments:
Sunday, 28 January 2018
तितली
›
मुद्दतों बाद आज फिर से भूली-बिसरी राहों से गुज़रते हरे मैदान के उपेक्षित कोने में गुलाब क...
14 comments:
Friday, 26 January 2018
पुस्तक समीक्षा:प्रिज़्म से निकले रंग
›
पुस्तक समीक्षा काव्य संग्रह-प्रिज़्म से निकले रंग कवि - रवीन्द्र सिंह यादव प्रकाशक - ऑन लाइन गाथा मूल...
15 comments:
Wednesday, 24 January 2018
गणतंत्र यानि...
›
चलो फिर से देशभक्ति की रस्म़ अदा करते है जश्न एक दिन की छुट्टी का जैसे सदा करते है देशभक्ति के गाने सुने झंडा फ़हरते देखे लाइव ...
36 comments:
Saturday, 20 January 2018
बसंत
›
भाँति-भाँति के फूल खिले हैं रंग-बिरंगी लगी फुलवारी। लाल,गुलाबी,हरी-बसंती महकी बगिया गुल रतनारी।। स्वर्ण मुकुट सुरभित वन उपवन ...
26 comments:
Wednesday, 17 January 2018
बवाल
›
खुल के कह दी बात दिल की तो बवाल लिख दिये जो ख़्वाब दिल के तो बवाल इधर-उधर से ढ़ूँढते हो रोज़ क़िस्से इश्क़ के हमने लफ़्ज़ों में बयां ...
53 comments:
Friday, 12 January 2018
तेरे नेह में
›
तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा ब...
26 comments:
‹
›
Home
View web version