मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 14 March 2018
अधूरा टुकड़ा
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बूढ़े पीपल की नवपत्रों से ढकी इतराती शाखों पर कूकती कोयल की तान हृदय केे सोये दर्द को जगा गयी हवाओं की हँसी से बिखरे बेरंग...
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Saturday, 10 March 2018
हथेली भर प्रेम
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मौन के इर्द-गिर्द मन की परिक्रमा अनुत्तरित प्रश्नों के रेत से छिल जाते है शब्द डोलते दर्पण में अस्पष्ट प्रतिबिंब पुतलियाँ...
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Wednesday, 7 March 2018
नारी : कही-अनकही
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जीवन की बगिया की मैं पुष्प सुरभित सुकुमारी सृष्टि बीज कोख में सींचती सुवासित करती धरा की क्यारी मैं मोम हृदय स्नेह की आँच से ...
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Wednesday, 28 February 2018
होली के रंग
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हृदय भरा उल्लास हथेलियों में मल रंग लिये, सुगंधहीन पलाश बिखरी तन में मादक गंध लिये। जला के ईष्या,द्वेष की होलिका राख मले म...
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Tuesday, 20 February 2018
पलाश
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पिघल रही सर्दियाँ झर रहे वृक्षों के पात निर्जन वन के दामन में खिलने लगे पलाश सुंदरता बिखरी फाग की चटख रंग उतरे घर आँगन ल...
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Friday, 16 February 2018
ब्लॉग की सालगिरह.... चाँद की किरणें
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सालभर बीत गये कैसे...पता ही नहीं चला। हाँ, आज ही के दिन १६फरवरी२०१७ को पहली बार ब्लॉग पर लिखना शुरु किये थे। कुछ पता नहीं था ब्लॉग के बा...
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Wednesday, 14 February 2018
निषिद्ध प्रेम नहीं
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स्मृति पीड़ा की अमरबेल मन से बिसराना चाहती हूँ मैं न भाये जग के कोलाहल प्रियतम,मुस्काना चाहती हूँ मैं मौसम की मधुमय प्रीति ...
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Sunday, 11 February 2018
चिरयौवन प्रेम
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तुम्हारे गुस्से भरे बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में बैशाख की...
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