मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Saturday, 31 March 2018
मूरखता का वरदान
›
समझदारी का पाठ पढ़ हम अघा गये भगवान थोड़ी सी मूरखता का अब तुमसे माँगे वरदान अदब,कायदे,ढ़ंग,तरतीब सब झगड़े बुद्धिमानों के प्रे...
24 comments:
Thursday, 29 March 2018
राष्ट्रधर्म
›
धर्म के नाम पर कराह रही इंसानियत राम,अल्लाह मौन है शोर मचाये हैवानियत धर्म के नाम पर इंसानों का बहिष्कार है मज़हबी नार...
25 comments:
Wednesday, 28 March 2018
एहसास का बवंडर
›
सूना बड़ा है तुम बिन ख़्वाबों का टूटा खंडहर। तुमसे ही मुस्कुराये खुशियों का कोई मंज़र ।। होने लगी है हलचल मेरे दिल की वादियों म...
4 comments:
Friday, 23 March 2018
एहसास
›
मौन हृदय के स्पंदन के सुगंध में खोये जग के कोलाहल से परे एक अनछुआ एहसास सम्मोहित करता है एक अनजानी कशिश खींचती है अपनी ओर ...
9 comments:
Wednesday, 14 March 2018
अधूरा टुकड़ा
›
बूढ़े पीपल की नवपत्रों से ढकी इतराती शाखों पर कूकती कोयल की तान हृदय केे सोये दर्द को जगा गयी हवाओं की हँसी से बिखरे बेरंग...
26 comments:
Saturday, 10 March 2018
हथेली भर प्रेम
›
मौन के इर्द-गिर्द मन की परिक्रमा अनुत्तरित प्रश्नों के रेत से छिल जाते है शब्द डोलते दर्पण में अस्पष्ट प्रतिबिंब पुतलियाँ...
29 comments:
Wednesday, 7 March 2018
नारी : कही-अनकही
›
जीवन की बगिया की मैं पुष्प सुरभित सुकुमारी सृष्टि बीज कोख में सींचती सुवासित करती धरा की क्यारी मैं मोम हृदय स्नेह की आँच से ...
24 comments:
Wednesday, 28 February 2018
होली के रंग
›
हृदय भरा उल्लास हथेलियों में मल रंग लिये, सुगंधहीन पलाश बिखरी तन में मादक गंध लिये। जला के ईष्या,द्वेष की होलिका राख मले म...
19 comments:
‹
›
Home
View web version