मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 9 June 2018
भरा शहर वीराना है
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पहचाने चेहरे हैं सारे क्यूँ लगता अंजाना है। उग आये हैं कंक्रीट वन भरा शहर वीराना है। बहे लहू जिस्मों पे ख़ंजर न दिखलाओ ऐसा म...
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Monday, 4 June 2018
विनाश की आहट
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5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर फिर से एक बार प्रभावशाली स्लोगन जोर-जोर से चिल्लायेगे,पेड़ों के संरक्षण के भाषण,बूँद-बूँद पानी की कीमत पहचान...
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Saturday, 2 June 2018
कौन सा रूप तुम्हारा?
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लिलार से टपकती पसीने की बूँद अस्त-व्यस्त बँधे केश का जूड़ा हल्दी-तेल की छींटे से रंगा हरा बाँधनी कुरता एक हाथ में कलछी और द...
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Wednesday, 30 May 2018
प्रेम संगीत
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जबसे साँसों ने तुम्हारी गंध पहचानानी शुरु की है तुम्हारी खुशबू हर पल महसूस करती हूँ हवा की तरह, ख़ामोश आसमां पर बादलों से ब...
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Sunday, 27 May 2018
क्या है प्रेम..?
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चित्र: साभार गूगल आँख मूँदें तुम्हारे एहसास में गुम जब भी चाहती हूँ तुम्हारी आत्मा से प्रेम करना तुम्हारे देह में उलझ कर रह जा...
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Wednesday, 23 May 2018
जेठ की तपिश
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चित्र:मनस्वी प्राजंल त्रिलोकी के नेत्र खुले जब अवनि अग्निकुंड बन जाती वृक्ष सिकुड़कर छाँह को तरसे नभ कंटक किरणें बरसाती बदरी...
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Saturday, 19 May 2018
तुम जीवित हो माने कैसे?
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चित्र-मनस्वी प्रांजल लीपे चेहरों की भीड़ में सच-झूठ पहचाने कैसे? अनुबंध टूटते विश्वास की मौन आहट जाने कैसे? नब्ज संवेदना की...
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Wednesday, 16 May 2018
पेड़ बचाओ,जीवन बचाओ
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हाँ,मैंने भी देखा है चारकोल की सड़कें फैल रही ही है सुरम्य पेड़ों से आच्छादित सर्पीली घाटियों में, सभ्य हो रहे है हम निर्वस्त्...
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